Shemushi Sanskrit class 10 solutions chapter 7
Shemushi Sanskrit class 10 solutions chapter 7, आजकल हम यहाँ-वहाँ सभी जगह देखते हैं कि समाज में प्रायः सभी स्वयं को श्रेष्ठ समझते हुए परस्पर एक-दूसरे का तिरस्कार कर रहे हैं। सामान्यतः पारस्परिक व्यवहार में दूसरों के कल्याण के विषय में तो सोच ही नहीं रह गई।
सप्तमः पाठः सौहार्दं प्रकृतेः शोभा
(सौहार्दं प्रकृति की शोभा है)
पाठ परिचय
आजकल हम यहाँ-वहाँ सभी जगह देखते हैं कि समाज में प्रायः सभी स्वयं को श्रेष्ठ समझते हुए परस्पर एक-दूसरे का तिरस्कार कर रहे हैं। सामान्यतः पारस्परिक व्यवहार में दूसरों के कल्याण के विषय में तो सोच ही नहीं रह गई। सभी स्वार्थ-साधना में ही लगे हुए हैं और जीवन का उद्देश्य ऐसे लोगों के लिए यही बन गया है कि-
“नीचैरनीचैरतिनीचनीचैः सर्वैः उपायैः फलमेव साध्यम्”
अतः समाज में मेल-जोल बढ़ाने की दृष्टि से इस पाठ में पशु-पक्षियों के माध्यम से समाज में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ दिखाने के प्रयास को दिखाते हुए प्रकृति माता के माध्यम से अन्त में यह दिखाने का प्रयास किया गया है कि सभी का यथासमय अपना-अपना महत्त्व है तथा सभी एक-दूसरे पर आश्रित हैं। अतः हमें परस्पर विवाद करते हुए नहीं अपितु मिल-जुलकर रहना चाहिए, तभी हमारा कल्याण संभव है।
पाठ के गद्यांशों/श्लोकों के कठिन शब्दार्थ एवं सप्रसंग हिन्दी अनुवाद
(1) Sanskrit Class 10 Chapter 7 Hindi translation
(वनस्य दृश्यम् समीपे एवैका नदी अपि वहति।) एकः सिंहः सुखेन विश्राम्यते तदैव एकः वानरः आगत्य तस्य पुच्छं धुनोति। कुद्धः सिंहः तं प्रहर्तुमिच्छति परं वानरस्तु कुर्दित्वा वृक्षमारूढः। तदैव अन्यस्मात् वृक्षात् अपर: वानरः सिंहस्य कर्णमाकृष्य पुनः वृक्षोपरि आरोहति एवमेव वानराः वारं वारं सिंहं तुदन्ति । कुद्धः सिंहः इतस्ततः धावति, गर्जति परं किमपि कर्तुमसमर्थः एव तिष्ठति । वानराः हसन्ति वृक्षोपरि च विविधाः पक्षिण: अपि सिंहस्य एतादृशीं दशां दृष्ट्वा हर्षमिश्रितं कलरवं कुर्वन्ति।
कठिन शब्दार्थ
एवैका (एव + एका) = ही एक। विश्राम्यते = विश्राम करता है (विश्रामं करोति)। पुच्छम् = पूँछ को। धुनोति = पकड़ कर घुमा देता है (गृहीत्वा आन्दोलयति)। प्रहर्तुम् = प्रहार करने के लिए (प्रहारं कर्तुम्) । कुर्दित्वा = कूदकर। वानरः = बन्दर (कपिः) । अपरः = दूसरा (अन्यः) । कर्णम् = कान को (श्रोत्रम्)। आकृष्य = खींचकर (कर्षयित्वा)। तुदन्ति = तंग करते हैं (अवसादयन्ति)। इतस्ततः = इधर-उधर (इतः + ततः)। कलरवम् = चहचहाहट को (पक्षिणां कूजनम्)।
प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सौहार्दं प्रकृतेः शोभा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पाठ में पशु-पक्षियों के माध्यम से समाज में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ दिखाने का तथा प्रकृति माता के माध्यम से सभी का यथासमय अपना-अपना महत्त्व बतलाया गया है। प्रस्तुत गद्यांश में वन में कुछ वानरों द्वारा एक सिंह को प्रताड़ित करने पर क्रुद्ध सिंह द्वारा उन्हें पकड़ने के लिए इधर-उधर दौड़ने तथा गर्जने का वर्णन करते हुए वृक्ष पर बैठे हुए वानरों व अन्य पक्षियों द्वारा सिंह की दशा पर हँसने का चित्रण हुआ है।
हिन्दी अनुवाद
(वन का दृश्य है, पास में ही एक नदी भी बहती है।) एक शेर सुखपूर्वक विश्राम कर रहा था, तभी एक बन्दर आकर उसकी पूँछ को पकड़ कर घुमा देता है। क्रोधित सिंह उस पर प्रहार करना चाहता है किन्तु बन्दर तो कूदकर वृक्ष पर चढ़ गया। तभी दूसरे वृक्ष से दूसरा बन्दर सिंह के कान को खींच कर पुनः वृक्ष के ऊपर चढ़ जाता है। इसी प्रकार बन्दर बार-बार सिंह को तंग करते हैं। क्रोधित सिंह इधर-उधर दौड़ता है, गर्जता है परन्तु कुछ भी करने में असमर्थ ही रहता है। बन्दर हँसते हैं और वृक्ष के ऊपर विविध पक्षी भी सिंह की इस प्रकार की दशा को देखकर हंसी से युक्त चहचहाहट करते हैं।
(2) Sanskrit Class 10 Chapter 7 Hindi translation
निद्राभङ्गदुःखेन वनराजः सन्नपि तुच्छजीवैः आत्मनः एतादृश्या दुरवस्थया श्रान्तः सर्वजन्तून् दृष्ट्वा पृच्छति-
सिंहः – (क्रोधेन गर्जन्) भोः! अहं वनराजः किं भयं न जायते? किमर्थं मामेवं तुदन्ति सर्वे मिलित्वा?
एकः वानरः – यतः त्वं वनराजः भवितुं तु सर्वथाऽयोग्यः। राजा तु रक्षकः भवति परं भवान् तु भक्षकः। अपि च स्वरक्षायामपि समर्थः नासि तर्हि कथमस्मान रक्षिष्यसि?
कठिन शब्दार्थ
वनराजः = वन का राजा (वनस्य राजा, सिंहः) । सन्नपि = होते हुए भी (सन् + अपि)। तुच्छजीवैः = नीच/कमजोर जीवों से (अल्पप्राणिभिः) । श्रान्तः = थका हुआ, पीडित (पीडितः) । दृष्ट्वा = देखकर (अवलोक्य)। मामेवम् = मुझको इस प्रकार (माम् + एवम्) । नासि = नहीं हो (न + असि)।
प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः‘ के ‘सौहार्दं प्रकृतेः शोभा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पाठ में पशु-पक्षियों के माध्यम से समाज में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ दिखाने का तथा प्रकृति माता के माध्यम से सभी का यथासमय अपना-अपना महत्त्व बतलाया गया है। इस नाट्यांश/गद्यांश में सिंह द्वारा स्वयं को वन का राजा बताने तथा एक वानर द्वारा उसे अयोग्य दर्शाने का रोचक वार्तालाप वर्णित है।
हिन्दी अनुवाद
नींद के टूटने से दुःखी वन का राजा होते हुए भी तुच्छ जीवों से अपनी इस प्रकार की दुर्दशा से थका हुआ (पीड़ित) सिंह सभी जन्तुओं को देखकर पूछता है-
सिंह – (क्रोध से गर्जन करता हुआ) अरे! मैं वन का राजा हूँ, क्या मुझसे भय उत्पन्न नहीं हो रहा है? किसलिए सभी मिलकर मुझे इस प्रकार तंग कर रहे हो?
एक बन्दर – क्योंकि तुम वन का राजा होने के लिए सर्वथा अयोग्य हो। राजा तो रक्षक होता है परन्तु आप तो भक्षक हैं। और भी तुम अपनी रक्षा करने में भी समर्थ नहीं हो, तब किस प्रकार हमारी रक्षा करोगे?
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(3) Sanskrit Class 10 Chapter 7 Hindi translation
अन्यः वानरः – किं न श्रुता त्वया पञ्चतन्त्रोक्तिः
यो न रक्षति वित्रस्तान् पीड्यमानान्परैः सदा।
जन्तुन् पार्थिवरूपेण स कृतान्तो न संशयः॥
काकः – आम् सत्यं कथितं त्वया-वस्तुतः वनराजः भवितुं तु अहमेव योग्यः।
पिकः – (उपहसन्) कथं त्वं योग्यः वनराजः भवितुं, यत्र तत्र का-का इति कर्कशध्वनिना वातावरणमाकुलीकरोषि। न रूपं न ध्वनिरस्ति। कृष्णवर्ण, मेध्यामेध्यभक्षकं त्वां कथं वनराजं मन्यामहे वयम्?
श्लोकस्य अन्वयः
यः सदा परैः पीड्यमानात् वित्रस्तान् जन्तून् पार्थिवरूपेण न रक्षति, सः कृतान्तः, न संशयः।
कठिन शब्दार्थ
परैः = दूसरों से (अपरैः)। वित्रस्तान् = विशेषरूप से डरे हुओं को (विशेषेण भीतान)। पार्थिवरूपेण = राजा के रूप में (नृपरूपेण)। कृतान्तः = जीवन का अन्त करने वाला, मृत्यु का देवता-यमराज (यमराजः) । पिकः = कोयल (कोकिला)। कर्कशध्वनिना = कठोर आवाज से (कटुवाण्या)। मेध्यामेध्य-भक्षकम् = खाद्य-अखाद्य की खाने वाला (भोज्याभोज्यखादकः)।
प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः‘ के ‘सौहार्दं प्रकृतेः शोभा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पाठ में पशु-पक्षियों के रोचक दृष्टान्त द्वारा समाज में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ बतलाने का तथा प्रकृति माता के माध्यम से सभी का यथासमय महत्त्व प्रतिपादित किया गया है। इस अंश में वानर, कौआ तथा कोयल के वार्तालाप में स्वयं को श्रेष्ठ तथा दूसरे को हीन बतलाते हुए रोचक संवाद किया गया है।
हिन्दी अनुवाद
दूसरा बन्दर – क्या तुमने पञ्चतन्त्र की उक्ति को नहीं सुना है-
जो राजा के रूप में हमेशा दूसरों से पीडित व विशेषरूप से डरे हुए प्राणियों की रक्षा नहीं करता है, वह निस्सन्देह साक्षात् यमराज है।
कौआ – हाँ तुमने सत्य कहा है- वास्तव में वन का राजा होने के लिए तो मैं ही योग्य हूँ।
कोयल – (उपहास करते हुए) तुम वन का राजा होने के लिए किस प्रकार योग्य हो, यहाँ-वहाँ ‘का-का’ इस प्रकार कर्कश ध्वनि के द्वारा वातावरण को व्याकुल कर देते हो। न रूप है और न हो आवाज। काले वर्ण वाले और भक्ष्य-अभक्ष्य पदार्थ खाने वाले तुमको कैसे हम वन का राजा मानें?
(4) Sanskrit Class 10 Chapter 7 Hindi translation
काकः – अरे! अरे! किं जल्पसि? यदि अहं कृष्णवर्णः तर्हि त्वं किं गौराङगः? अपि च विस्मयते किं यत् मम सत्यप्रियता तु जनानां कृते
उदाहरणस्वरूपा- ‘अनृतं वदसि चेत् काकः दशेत्’ इति प्रकारेण। अस्माकं परिश्रमः ऐक्यं च विश्वप्रथितम् अपि च काकचेष्ट: विद्यार्थी एव आदर्शच्छात्रः मन्यते।
पिकः – अलम् अलम् अतिविकत्थनेन। किं विस्मयते यत्-
काकः कृष्णः पिकः कृष्णः को भेदः पिककाकयोः। वसन्तसमये प्राप्ते काकः काकः पिकः पिकः।।
श्लोकस्य अन्वयः
काकः कृष्णः (भवति), पिकः (अपि) कृष्णः (भवति), पिक-काकयोः कः भेटः (अस्ति)? वसन्तसमये प्राप्ते काकः काकः, पिक: पिकः (भवति)।
कठिन शब्दार्थ
जल्पसि = बकवास कर रहे हो (मिथ्या वदसि)। गौराङगः = गौर अंगों वाला (श्वेतशरीरः) । अनृतम् = असत्य (अलीकम्)। ऐक्यम् = एकता (एकता)। अतिविकत्यनेन = डींगें मारने से (आत्मश्लाघया)। पिककाकयोः = कोयल और कौए में (कोकिलकाकयोः)।
प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः‘ के ‘सौहार्दं प्रकृतेः शोभा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पाठ में पशु-पक्षियों के रोचक दृष्टान्त द्वारा समाज में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ बतलाने का तथा प्रकृति माता के माध्यम से सभी का यथासमय महत्व प्रतिपादित किया गया है। इस नाट्यांश में स्वयं को एक-दूसरे से श्रेष्ठ बतलाते हुए कौए तथा कोयल का रोचक वार्तालाप वर्णित है।
हिन्दी अनुवाद
कौआ – अरे! अरे! क्या बकवास (व्यर्थ की बात) कर रहे हो? यदि मैं काले रंग का हूँ तो तुम क्या गोरे (सफेद) शरीर वाले हो? और भी क्या तुम भूल गये हो कि मेरी सत्यप्रियता तो लोगों के लिए उदाहरणस्वरूप है- ‘यदि झूठ बोलोगे तो कौआ काटेगा”- इस प्रकार से हमारा परिश्रम और एकता संसार में प्रसिद्ध है, और भी कौए की चेष्टा वाला विद्यार्थी ही आदर्श छात्र माना जाता है।
कोयल – बस, बस डींगें मारने से क्या भूल रहे हो कि-
कौआ काला होता है, कोयल भी काली होती है फिर कोयल और कौए में क्या भेद है? वसन्त का समय आने पर कौआ कौआ होता है और कोयल कोयल होती है।
(5) Sanskrit Class 10 Chapter 7 Hindi translation
काकः – रे परभृत्! अहं यदि तव संततिं न पालयामि तर्हि कृत्र स्युः पिकाः? अतः अहम् एव करुणापरः पक्षिसम्राट् काकः।
गजः – समीपतः एवागच्छन् अरे! अरे! सर्वां वातां शृण्वन्नेवाहम् अत्रागच्छम्। अहं विशालकायः, बलशाली, पराक्रमी च। सिंहः वा स्यात् अथवा अन्यः कोऽपि। वन्यपशून् तु तुदन्तं जन्तुमहं स्वशुण्डेन पोथयित्वा मारयिष्यामि। किमन्यः कोऽप्यस्ति एतादृशः पराक्रमी। अतः अहमेव योग्यः वनराजपदाय।
वानरः – अरे! अरे! एवं वा (शीघ्रमेव गजस्यापि पुच्छं विधूय वृक्षोपरि आरोहति।)
कठिन शब्दार्थ
परभृत् = दूसरों से पालन किया गया, कोयल (पिकः)। संततिम् = सन्तान को। पक्षिसम्राट = पक्षियों का राजा (पक्षिराज:) । शृण्वन्नेवाहम् = सुनते हुए ही मैं (शृण्वन्+एव-अहम् = आकर्ण्यन् एव अहम्)। कायः = शरीर वाला (शरीरः) । स्वशुण्डेन = अपनी सूंड से । पोथयित्वा = पटक-पटक कर (पीडयित्वा) । मारयिष्यामि = मार डालूँगा (हनिष्यामि) । पुच्छं = पूँछ को। विधूय = खींच कर ।
प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः‘ के ‘सौहार्दं प्रकृतेः शोभा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पाठ में पशु-पक्षियों के रोचक दृष्टान्त द्वारा समाज में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ बतलाने का तथा प्रकृति माता के माध्यम से सभी का यथासमय महत्त्व प्रतिपादित किया गया है। इस अंश में कौए, हाथी तथा बन्दर का स्वयं की श्रेष्ठता सिद्ध करते हुए रोचक संवाद वर्णित है।
हिन्दी अनुवाद
कौआ – अरे कोयल! मैं यदि तुम्हारी सन्तान का पालन-पोषण नहीं करूंगा तो कोयल कहाँ होंगे? इसलिए मैं ही कौआ करुणापरायण पक्षियों का राजा हूँ।
हाथी – पास से ही आता हुआ- अरे! अरे! सारी बात सुनते हुए ही मैं यहाँ आया हूँ। मैं विशाल शरीर वाला, बलशाली और पराक्रमी हूँ। सिंह हो अथवा अन्य कोई भी। जंगल के पशुओं को तंग करने वाले जीव को मैं अपनी सूंड से पटक-पटक कर मार डालूँगा। क्या दूसरा कोई भी ऐसा पराक्रमी है? इसलिए मैं ही वनराज पद के लिए योग्य हूँ।
बन्दर – अरे! अरे! ऐसा है (शीघ्र ही हाथी की भी पूँछ को खींच कर पेड़ के ऊपर चढ़ जाता है।)
(6) Sanskrit Class 10 Chapter 7 Hindi translation
(गजः तं वृक्षमेव स्वशुण्डेन आलोडयितुमिच्छति परं वानरस्तु कुर्दित्वा अन्यं वृक्षमारोहति । एवं गजं वृक्षात् वृक्ष प्रति धावन्तं दृष्ट्वा सिंहः अपि हसति वदति च।)
सिंहः – भोः गज! मामप्येवमेवातुदन् एते वानराः।
वानरः – एतस्मादेव तु कथयामि यदहमेव योग्यः वनराजपदाय येन विशालकायं पराक्रमिणं, भयंकरं चापि सिहं गजं वा पराजेतुं समर्था अस्माकं जातिः। अतः वन्यजन्तूनां रक्षायै वयमेव क्षमाः।
कठिन शब्दार्थ
आलोडयितुम् = उखाड़ने के लिए (उत्पाटयितुम्) । धावन्तम् = दौड़ते हुए को। अतुदन् = तंग कर रहे थे (अपीडयन्)। पराजेतुम् = पराजित करने के लिए (पराजयाय)।
प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः‘ के ‘सौहार्दं प्रकृतेः शोभा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पाठ में पशु-पक्षियों के रोचक दृष्टान्त द्वारा समाज में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ बतलाने का तथा प्रकृति माता के माध्यम से सभी का यथासमय महत्त्व प्रतिपादित किया गया है। इस अंश में हाथी, सिंह (Lion), वानर आदि के संवाद का रोचक वर्णन है।
हिन्दी अनुवाद
(हाथी उस वृक्ष को ही अपनी सूंड से उखाड़ना चाहता था, किन्तु बन्दर कूद कर दूसरे पेड पर चढ़ जाता है। इस प्रकार एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष की ओर हाथी को दौड़ता हुआ देखकर सिंह भी हँसता है और कहता है)
सिंह – हे हाथी ! मुझे भी इसी प्रकार ये बन्दर तंग कर रहे थे।
बन्दर – इसीलिए तो मैं कहता हूँ कि मैं ही वनराज पद के लिए योग्य हूँ जिससे हमारी जाति (वानरजाति) विशाल शरीर वाले, पराक्रमी और भयंकर सिंह अथवा हाथी को भी पराजित करने में समर्थ है। इसलिए जंगल के जीवों की रक्षा करने में हम ही सक्षम हैं।
(7) Sanskrit Class 10 Chapter 7 Hindi translation
(एतत्सर्वं श्रुत्वा नदीमध्य स्थितः एकः बकः)
बकः – अरे। अरे! मां विहाय कथमन्यः कोऽपि राजा भवितुमर्हति अहं तु शीतले जले बहुकालपर्यन्तम् अविचल: ध्यानमग्नः स्थितप्रज्ञ इव स्थित्वा सर्वेषां रक्षायाः उपायान् चिन्तयिष्यामि, योजना निर्मीय च स्वसभायां विविधपदमलंकर्वाणैः जन्तुभिश्च मिलित्वा रक्षोपायान् क्रियान्वितान् कारयिष्यामि अतः अहमेव वनराजपदप्राप्तये योग्यः।
मयूरः – (वृक्षोपरित:- साट्टहासपूर्वकम्) विरम विरम आत्मश्लाघायाः किं न जानासि यत्-
यदि न स्यान्नरपतिः सम्यनेता ततः प्रजा।
अकर्णधारा जलधौ विप्लवेतेह नौरिव॥
को न जानाति तव ध्यानावस्थाम्। ‘स्थितप्रज्ञ’ इति व्याजेन वराकान् मीनान् छलेन अधिगृह्य क्रूरतया भक्षयसि। धिक् त्वाम्। तव कारणात् तु सर्व पक्षिकुलमेवावमानितं जातम्।
श्लोकस्य अन्वयः
यदि नरपतिः सम्यक नेता न स्यात्, ततः इह प्रजा अकर्णधारा नौः इव जलधौ विप्लवेत्।
कठिन शब्दार्थ
श्रुत्वा = सुनकर (आकर्ण्य) । बकः = बगुला। विहाय = छोड़कर (त्यक्त्वा)। अविचल: – स्थिर (स्थिरः) । स्थितप्रज्ञ = समाधि में लगा हुआ विद्वान (समाधिस्थः)। निर्मीय = निर्माण करके (निर्माणं कृत्वा)। वृक्षोपरितः = पेड़ के ऊपर से (वृक्षस्य उपरितः) । साट्टहासपूर्वकम् = ठहाका मारते हुए (अट्टहासेन सहितम्) । विरम = रुको (तिष्ठ)। नरपतिः = राजा। जलधौ = समुद्र में (सागरे)। अकर्णधारा = बिना मल्लाह/चालक वाली। नीरिव = नौका के समान (नौः + इव-नौकाया: समानम्) विप्लवेत = डूब जाती है (विशीर्येत)। व्याजेन = बहाने से। वराकान् = बेचारे। मीनान् = मछलियों को (मत्स्यान्) । अधिगृह्य = पकड़ कर (गृहीत्वा)।
प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः‘ के ‘सौहार्दं प्रकृतेः शोभा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पाठ में पशु-पक्षियों के रोचक दृष्टान्त द्वारा समाज में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ बतलाने का तथा प्रकृति माता के माध्यम से सभी का यथासमय महत्त्व प्रतिपादित किया गया है। इस अंश में दूसरों से स्वयं को श्रेष्ठ बतलाते हुए बगुले तथा मयूर का रोचक वार्तालाप वर्णित है।
हिन्दी अनुवाद
(यह सब सुनकर नदी के बीच में स्थित एक बगुला)
बगुला – अरे! अरे! मुझे छोड़कर कैसे दूसरा कोई भी राजा हो सकता है। मैं तो शीतल जल में बहुत समय तक स्थिर रहता हुआ, ध्यानमग्न स्थितप्रज्ञ के समान स्थित होकर सभी की रक्षा के उपायों को सोचूंगा और योजना का निर्माण करके अपनी सभा में विभिन्न पदों को सुशोभित करने वाले जीवों के साथ मिलकर रक्षा के उपायों को क्रियान्वित कराऊँगा। इसलिए मैं ही वनराज पद की प्राप्ति के लिए योग्य हैं।
मयूर – (वृक्ष के ऊपर से ठहाका मारते हुए) रुको रुको आत्मप्रशंसा करने से, क्या नहीं जानते हो कि- यदि राजा सही नेतृत्व करने वाला नहीं होता है तो यहाँ प्रजा उसी प्रकार नष्ट हो जाती है जिस प्रकार समुद्र में बिना मल्लाह/चालक वाली नाव (नौका) डूब जाती है।
तुम्हारी ध्यान-अवस्था को कौन नहीं जानता है। ‘स्थितप्रज्ञ’ इस बहाने से बेचारे मछलियों को कपट से पकड़ कर क्रूरतापूर्वक खाते हो। तुमको धिक्कार है। तुम्हारे कारण तो सम्पूर्ण पक्षिसमुदाय ही अपमानित हो गया है।
(8) Sanskrit Class 10 Chapter 7 Hindi translation
वानरः – (सगर्वम्) अतएव कथयामि यत् अहमेव योग्यः वनराजपदाय। शीघ्रमेव मम राज्याभिषेकाय तत्पराः भवन्तु सर्वे वन्यजीवाः।
मयूरः – अरे वानर! तूष्णीं भव। कथं त्वं योग्यः वनराजपदाय? पश्यतु पश्यतु मम शिरसि राजमुकुटमिव शिखां स्थापयता विधात्रा एवाहं पक्षिराजः कृतः अतः वने निवसन्तं माम् वनराजरूपेणापि द्रष्टुं सज्जाः भवन्तु अधुना यतः कथं कोऽप्यन्य: विधातुः निर्णयम् अन्यथाकर्तु क्षमः।
काकः – (सव्यङ्ग्यम्) अरे अहिभुक्। नृत्यातिरिक्तं का तव विशेषता यत् त्वां वनराजपदाय योग्यं मन्यामहे वयम्।
मयूरः – यतः मम नृत्यं तु प्रकृतेः आराधना। पश्य! पश्य! मम पिच्छानामपूर्व सौंदर्यम (पिच्छानुद्घाट्य नृत्यमुद्रायां स्थितः सन्) न कोऽपि त्रैलोक्ये मत्सदृशः सुन्दरः। वन्यजन्तूनामुपरि आक्रमणं कर्तारं तु अहं स्वसौन्दर्येण नृत्येन च आकर्षितं कृत्वा वनात् बहिष्करिष्यामि। अतः अहमेव योग्यः वनराजपदाय।
कठिन शब्दार्थ
तूष्णीं भव = चुप रहो (मौनं भव)। विधात्रा = विधाता के द्वारा (ब्रह्मणा)। द्रष्टुम् = देखने के लिए (अवलोकयितुम्) । सज्जा: = तैय्यार (तत्पराः)। क्षमः = समर्थ है (सक्षमः) । अहिभुक = सर्प को खाने वाला-मयूर (सर्पभक्षक:-मयूरः) । पिच्छानाम् = पंखों का। त्रैलोक्ये = तीनों लोकों में (भुवनत्रये)।
प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः‘ के ‘सौहार्दं प्रकृतेः शोभा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पाठ में पशु-पक्षियों के रोचक दृष्टान्त द्वारा समाज में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ बतलाने का तथा प्रकृति माता के माध्यम से सभी का यथासमय महत्त्व प्रतिपादित किया गया है। इस अंश में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ बतलाते हुए वानर, मयूर व कौए का रोचक वार्तालाप वर्णित है।
हिन्दी अनुवाद
बन्दर – (गर्वपूर्वक) इसीलिए कहता हूँ कि मैं ही वनराज पद के लिए योग्य हूँ। शीघ्र ही मेरे राज्याभिषेक के लिए सभी वन्यजीव तत्पर हो जावें।
मयूर – अरे बन्दर! चुप रहो। तुम कैसे वनराज पद के लिए योग्य हो? देखो, देखो, मेरे शिर पर राजमुकुट के समान शिखा (कलंगी) को स्थापित करने वाले विधाता के द्वारा ही मैं पक्षिराज बनाया गया हूँ । इसलिए वन में निवास करते हुए अब मुझको वनराज के रूप में भी देखने के लिए तैय्यार हो जाओ। क्योंकि कोई भी अन्य विधाता के निर्णय को बदलने में समर्थ नहीं है।
कौआ – (व्यंग्यपूर्वक) अरे सर्प को खाने वाले मौर! नाचने के अलावा तुम्हारी क्या विशेषता है कि हम तुमको वनराज पद के लिए योग्य माने?
मयूर – क्योंकि मेरा नाचना तो प्रकृति की आराधना (पूजा) है। देखो! देखो! मेरे पंखों का अपूर्व सौन्दर्य (पंखों को खोलकर नाचने की मुद्रा में स्थित होता हुआ)। कोई भी तीनों लोकों में मेरे समान सुन्दर नहीं है। वन के जीवों के ऊपर आक्रमण करने वाले को तो मैं अपने सौन्दर्य और नृत्य से आकर्षित करके वन से बाहर कर दूंगा। इसलिए मैं ही वनराज पद के लिए योग्य हूँ।
(9) Sanskrit Class 10 Chapter 7 Hindi translation
(एतस्मिन्नेव काले व्याघ्रचित्रकौ अपि नदीजलं पातुमागतौ एतं विवादं शृणुतः वदतः च)
व्याघ्रचित्रकौ- अरे किं वनराजपदाय सपात्रं चीयते? ।
एतदर्थं तु आवामेव योग्यौ। यस्य कस्यापि चयनं कुर्वन्तु सर्वसम्मत्या।
सिंहः – तूष्णीं भव भोः। युवामपि मत्सदृशौ भक्षकौ न तु रक्षकौ। एते वन्यजीवाः भक्षक रक्षकपदयोग्यं न मन्यन्ते अतएव विचारविमर्शः प्रचलति।
बक: – सर्वथा सम्यगुक्तम् सिंहमहोदयेन। वस्तुतः एव सिंहेन बहुकालपर्यन्तं शासनं कृतम् परमधना तु कोऽपि पक्षी एव राजेति निश्चेतव्यम् अत्र तु संशीतिलेशस्यापि अवकाशः एव नास्ति।
कठिन शब्दार्थ
व्याघ्रचित्रकौ = बाघ और चीता। पातुम् = पीने के लिए। शृणुतः = दोनों सुनते हैं (द्वावपि आकर्ण्यतः)। चीयते = खोजा जा रहा है (अन्विष्यते) । एतदर्थम् = इसके लिए (अस्य कृते) । तूष्णीं भव = चुप रहो (मौनं तिष्ठ)। संशीतिलेशस्य = जरा से भी सन्देह की (सन्देहमात्रस्य)।
प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः‘ के ‘सौहार्दं प्रकृतेः शोभा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पाठ में पशु-पक्षियों के रोचक दृष्टान्त द्वारा समाज में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ बतलाने का तथा प्रकृति माता के माध्यम से सभी का यथासमय महत्त्व प्रतिपादित किया गया है। इस अंश में दूसरों से स्वयं को श्रेष्ठ एवं वनराज बनने के योग्य बतलाते हुए बाघ, चीता, सिंह और बगुला का परस्पर में रोचक वार्तालाप वर्णित है।
हिन्दी अनवाद
(इसी समय बाघ और चीता भी नदी का जल पीने के लिए आये। इस विवाद को सुनते हैं। और बोलते हैं।)
बाघ और चीता – अरे! क्या वनराज पद के लिए योग्य पात्र को खोजा जा रहा है? इसके लिए तो हम दोनों ही योग्य हैं। जिस किसी का भी सर्वसम्मति से चयन कीजिए।
सिंह – चुप रहो। तुम दोनों भी मेरे समान भक्षक हो, न कि रक्षक। ये वन के जीव भक्षक को रक्षक पद के योग्य नहीं मानते हैं, इसीलिए विचार-विमर्श चल रहा है।
बगुला – सिंह महोदय के द्वारा सर्वथा उचित कहा गया है। वास्तव में सिंह के द्वारा बहुत समय तक शासन किया गया है, परन्तु अब कोई भी पक्षी ही राजा बने, ऐसा निश्चित किया जाना चाहिए, इसमें जरा से भी सन्देह का अवकाश ही नहीं है।
(10) Sanskrit Class 10 Chapter 7 Hindi translation
सर्वे पक्षिणः – ( उच्चैः)- आम् आम्-कश्चित् खगः एव वनराजः भविष्यति इति।
(परं कश्चिदपि खगः आत्मानं विना नान्यं कमपि अस्मै पदाय योग्यं चिन्तयन्ति तर्हि कथं निर्णयः भवेत तदा तैः सर्वैः गहननिद्रायां निश्चिन्तं स्वपन्तम् उलूकं वीक्ष्य विचारितम् यदेषः आत्मश्लाघाहीन: पदनिर्लिप्त; उलूको एवास्माकं राजा भविष्यति। परस्परमादिशान्ति च तदानीयन्तां नृपाभिषेकसम्बन्धिनः सम्भारा: इति।।
कठिन शब्दार्थ
उच्चैः = जोर से। खगः = पक्षी। कश्चिदपि = कोई भी। चिन्तयति = सोचता है (विचारयति) । गहननिद्रायाम् = गहरी नींद में। स्वपन्तम् = सोते हुए को (शयानम्) । उलूकम् = उल्लू को। वीक्ष्य = देखकर (दृष्ट्वा)। आत्मश्लाघाहीनः = आत्मप्रशंसा से रहित (आत्मप्रशंसारहितः)। सम्भारा: = सामग्रियाँ (सामग्र्यः)।
प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः‘ के ‘सौहार्दं प्रकृतेः शोभा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पाठ में पशु-पक्षियों के रोचक दृष्टान्त द्वारा समाज में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ बतलाने का तथा प्रकृति माता के माध्यम से सभी का यथासमय महत्त्व प्रतिपादित किया गया है। इस अंश में वन का राजा बनने हेतु सभी पक्षियों द्वारा उल्लू को ही वनराज बनाने का निर्णय लेने का वर्णन किया गया है।
हिन्दी अनुवाद
सभी पक्षी – (जोर से) हाँ हाँ, कोई पक्षी ही वन का राजा होगा। (परन्तु कोई भी पक्षी स्वयं के अलावा अन्य किसी को भी इस पद के लिए योग्य मानता है, फिर कैसे निर्णय होना चाहिए? तब उन सभी ने गहरी नींद में निश्चिन्त होकर सोते हुए उल्लू को देखकर विचार किया कि यह आत्मप्रशंसा से रहित, पद के लोभ से रहित उल्लू ही हमारा राजा होगा। और आपस में आदेश देते हैं कि राजा के अभिषेक से सम्बन्धित सामग्रियाँ लाई जावें।)
(11) Sanskrit Class 10 Chapter 7 Hindi translation
सर्वे पक्षिणः सजायै गन्तुमिच्छन्ति तर्हि अनायास एव-
काकः – (अट्टाहासपूर्णेन-स्वरेण)-सर्वथा अयुक्तमेतत् यन्मयूर-हंस-कोकिल-चक्रवाक शुक-सारसादिषु पक्षिप्रधानेषु विद्यमानेषु दिवान्धस्यास्य करालवक्त्रस्याभिषेकार्थं सर्वे सज्जाः। पूर्ण दिनं यावत् निद्रायमाणः एषः कथमस्मान् रक्षिष्यति। वस्तुतस्तु-
स्वभावरौद्रमत्युग्रं क्रूरमप्रियवादिनम्।
उलूकं नृपतिं कृत्वा का नु सिद्धिर्भविष्यति ।।
श्लोकस्य अन्वयः
स्वभावरौद्रम, अत्युग्रम्, क्रूरम्, अप्रियवादिनम् उलूकं नृपतिं कृत्वा नु का सिद्धिः भविष्यति?
कठिन शब्दार्थ
सज्जायै = तैय्यारी के लिए। कोकिलः = कोयल (पिकः)। चक्रवाकः = चकवा पक्षी। शुकः = तोता। दिवान्धस्य = दिन के अन्धे/उल्लू को। करालवक्त्रस्य = भयंकर मुख वाले का (भयंकरमुखस्य)। निद्रायमाणः = सोता हुआ।
प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः‘ के ‘सौहार्दं प्रकृतेः शोभा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पाठ में पशु-पक्षियों के रोचक दृष्टान्त द्वारा समाज में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ बतलाने का तथा प्रकृति माता के माध्यम से सभी का यथासमय महत्त्व प्रतिपादित किया गया है। इस अंश में सभी पक्षियों द्वारा उल्लू को वन का राजा बनाये जाने हेतु लिये गये निर्णय का कौए द्वारा दृढ़ता से विरोध किया गया है।
हिन्दी अनुवाद
सभी पक्षी तैय्यारी करने के लिए जाना चाहते हैं, तभी अचानक ही-
कौआ – (अट्टहासपूर्ण स्वर से)- सभी तरह से यह उचित नहीं है कि मोर, हंस, कोयल, चकवा, तोता, सारस आदि प्रधान पक्षियों के होते हुए दिन के अन्धे और भयंकर मुख वाले उल्लू का राज्याभिषेक करने के लिए सभी तत्पर हो। पूरे दिन सोता हुआ यह (उल्लू) किस प्रकार हमारी रक्षा करेगा। वास्तव में तो स्वभाव से ही रौद्र, अत्यन्त उग्र, क्रूर, अप्रिय बोलने वाले उल्लू को राजा बनाकर क्या सफलता प्राप्त होगी?
(12) Sanskrit Class 10 Chapter 7 Hindi translation
(ततः प्रविशति प्रकृतिमाता)
(सस्नेहम्) भोः भोः प्राणिनः। यूयम् सर्वे एव मे सन्ततिः । कथं मिथः कलहं कुर्वन्ति । वस्तुतः सर्वे वन्यजीविनः अन्योन्याश्रिताः । सदैव स्मरत
ददाति प्रतिगृह्णाति, गुयमाख्याति पृच्छति।
भुङ्क्ते योजयते चैव षड्विधं प्रीतिलक्षणम्॥
(सर्वे प्राणिनः समवेतस्वरेण)
मातः। कथयति तु भवती सर्वथा सम्यक परं वयं भवतीं न जानीमः। भवत्याः परिचयः कः?
श्लोकस्य अन्वयः
ददाति, प्रतिगृहणाति, गुह्यम् आख्याति, पृच्छति, भुङ्क्ते, योजयते च, प्रीतिलक्षणं षड्विधम् एव (भवति)।
कठिन शब्दार्थ
मे = मेरी (मम)। सन्ततिः = सन्तान। मिथः = आपस में (परस्परम्) । अन्योन्याश्रिताः = एक-दूसरे पर आश्रित। ददाति = देता है (यच्छति)। गुह्यमाख्याति = रहस्य कहता है (रहस्यं वदति)। भुङ्क्ते = खाता है (भोजनं करोति)।
प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः‘ के ‘सौहार्दं प्रकृतेः शोभा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पाठ में पशु-पक्षियों के रोचक दृष्टान्त द्वारा समाज में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ बतलाने का तथा प्रकृति माता के माध्यम से सभी का यथासमय महत्त्व प्रतिपादित किया गया है। इस अंश में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ दर्शाते हुए तथा कलह करते हुए पशु-पक्षियों को देखकर प्रकृति-माता के आने का एवं प्रेरणास्पद उपदेश दिए जाने का वर्णन हुआ है।
हिन्दी अनुवाद
(तत्पश्चात् प्रकृति-माता प्रवेश करती है)
(स्नेहपूर्वक) हे प्राणियों! तुम सभी मेरी सन्तान हो। क्यों आपस में कलह कर रहे हो? वास्तव में सभी एकदूसरे पर आश्रित हैं। हमेशा याद रखो- प्रीति (प्रेम) के लक्षण छ: प्रकार के ही हैं- देता है, लेता है, रहस्य कहता है, कुशलता पूछता है, साथ भोजन करता है और अच्छे कार्यों में लगाता है।
(सभी प्राणी इकट्ठे स्वर से)
माता! आप कहती तो सर्वथा उचित हैं, परन्तु हम आपको जानते नहीं हैं। आपका क्या परिचय है?
(13) Sanskrit Class 10 Chapter 7 Hindi translation
प्रकृतिमाता – अहं प्रकृतिः युष्माकं सर्वेषां जननी? यूयं सर्वे एव मे प्रियाः । सर्वेषामेव मत्कते महत्त्वं विद्यते यथासमयम् न तावत् कलहेन समयं वृथा यापयन्तु अपितु मिलित्वा एव मोदध्वं जीवनं च रसमयं कुरुध्वम्। तद्यथा कथितम्-
प्रजासुखे सुखं राज्ञः, प्रजानां च हिते हितम।
नात्मप्रियं हितं राज्ञः, प्रजानां तु प्रिय हितम्॥
श्लोकस्य अन्वयः
प्रजासुखे राज्ञः सुखम्, प्रजानां हिते च (राज्ञः) हितम्। आत्मप्रियं राज्ञः हितं न, प्रजानां प्रियं तु (राज्ञः) हितम्।
कठिन शब्दार्थ
जननी = माता (माता)। वृथा = व्यर्थ ही (व्यर्थम्)। यापयन्तु = व्यतीत करें (व्यतीते कुर्वन्तु)। मोदध्वम् = (तुम सब) प्रसन्न हो जाओ (प्रसन्नाः भवत)। राज्ञः = राजा का (नृपस्य)। हिते = कल्याण/ हित में (कल्याणे)।
प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः‘ के ‘सौहार्दं प्रकृतेः शोभा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पाठ में पशु-पक्षियों के रोचक दृष्टान्त द्वारा समाज में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ बतलाने का तथा प्रकृति माता के माध्यम से सभी का यथासमय महत्त्व प्रतिपादित किया गया है।
हिन्दी अनुवाद
प्रकृति माता- मैं प्रकृति तुम सब की माता हूँ। तुम सभी मुझे प्रिय हो। सभी का ही मेरे लिए यथा-समय महत्त्व है। कलह (झगड़ा) करने में समय को व्यर्थ ही व्यतीत न करो, अपितु मिलकर ही प्रसन्न रहो और जीवन को रसमय करो। जैसा कि कहा भी गया है- प्रजा के सुख में ही राजा का सुख है और प्रजा के हित में ही राजा का हित है। अपना ही प्रिय करने में राजा का हित नहीं है, प्रजाजनों का प्रिय करने में ही राजा का हित (भला) है।
(14) Sanskrit Class 10 Chapter 7 Hindi translation
अपि च-
अगाधजलसञ्चारी न गवं याति रोहितः।
अङ्गुष्ठोदकमात्रेण शफरी फुफुरायते ॥
अतः भवन्तः सर्वेऽपि शफरीवत् एकैकस्य गुणस्य चर्चा विहाय मिलित्वा प्रकृतिसौन्दर्याय वनरक्षायै च प्रयतन्ताम्।
सर्वे प्रकृतिमातरं प्रणमन्ति मिलित्वा दृढसंकल्पपूर्वकं च गायन्ति
प्राणिनां जायते हानिः परस्परविवादतः।
अन्योन्यसहयोगेन लाभस्तेषां प्रजायते॥
(i) Class 10th Sanskrit chapter 7 solution
श्लोकस्य अन्वयः
अगाधजलसञ्चारी रोहितः गर्वं न याति। (परन्तु) अङ्गुष्ठोदकमात्रेण शफरी फुफुरायते।
(ii) Class 10th Sanskrit chapter 7 solution
श्लोकस्य अन्वयः
परस्परविवादतः प्राणिनां हानिः जायते। अन्योन्यसहयोगेन तेषां लाभः प्रजायते।
कठिन शब्दार्थ
अगाधजलसञ्चारी = अथाह जलधारा में संचरण करने वाला (असीमितजलधारायां भ्रमन)। रोहितः = रोहित (रोह) नामक बड़ी मछली (रोहित नाम मत्स्यः)। अङ्गुष्ठोदकमात्रेण = अंगूठे के बराबर जल में अर्थात् थोड़े से जल में। शफरी = छोटी सी मछली (लघुमत्स्यः )।
विहाय = छोड़कर (त्यक्त्वा)। प्रयतन्ताम् = प्रयत्न कीजिए (प्रयत्नं कुर्यात्) । अन्योन्यसहयोगेन = एक दूसरे के सहयोग से (परस्परं साहाय्येन)।
प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः‘ के ‘सौहार्दं प्रकृतेः शोभा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पाठ में पशु-पक्षियों के रोचक दृष्टान्त द्वारा समाज में स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ बतलाने का तथा प्रकृति माता के माध्यम से सभी का यथासमय महत्त्व प्रतिपादित किया गया है।
हिन्दी अनुवाद
और भी-
अथाह जलधारा में संचरण करने वाली रोहित नाम बड़ी मछली गर्व (अभिमान) नहीं करती है, परन्तु अंगूठे के बराबर जल में अर्थात् थोड़े से जल में छोटी सी मछली फड़कती रहती है।
इसलिए आप सभी छोटी मछली (शफरी) के समान एक-एक के गुण की चर्चा छोड़कर व मिलकर प्रकृति के सौन्दर्य के लिए और वन की रक्षा के लिए प्रयत्न कीजिए।
सभी प्रकृति-माता को प्रणाम करते हैं और मिलकर दृढ़ संकल्पपूर्वक गाते हैं-
आपस में विवाद करने से प्राणियों की हानि होती है। एक-दूसरे के सहयोग से उनका (प्राणियों का) लाभ होता है।
Class 10th Sanskrit chapter 7 solution
पाठ्यपुस्तकस्य प्रश्नोत्तराणि
प्रश्न 1. एकपदेन उत्तरं लिखत-
(क) वनराजः कैः दुरवस्था प्राप्तः?
उत्तरम्- तुच्छजीवैः वानरैः।
(ख) कः वातावरणं कर्कशध्वनिना आकुलीकरोति?
उत्तरम्- काकः।
(ग) काकचेष्ट: विद्यार्थी कीदृशः छात्र: मन्यते?
उत्तरम्- आदर्शच्छात्रः।
(घ) कः आत्मानं बलशाली, विशालकायः, पराक्रमी च कथयति।
उत्तरम्- गजः।
(ङ) बकः कीदृशान् मीनान् क्रूरतया भक्षयति?
उत्तरम्- वराकान् मीनान्।
प्रश्न 2. Class 10th Sanskrit chapter 7 solution
अधोलिखितप्रश्नानामुत्तराणि पूर्णवाक्येन लिखत-
(अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर पूर्ण वाक्य में लिखिए-)
(क) नि:संशयं कः कृतान्तः मन्यते?
(निःसन्देह कौन यमराज माना जाता है?)
उत्तरम्- य: पार्थिवरूपेण सदा परैः पीड्यमानान् वित्रस्तान् जन्तून् न रक्षति, स: निःसंशयं कृतान्त: मन्यते।
(जो राजा के रूप में हमेशा शत्रुओं से पीड़ित एवं भयभीत प्राणियों की रक्षा नहीं करता है, वह निःसन्देह यमराज माना जाता है।)
(ख) बकः वन्यजन्तूनां रक्षोपायान् कथं चिन्तयितुं कथयति?
(बगुला वन्यजीवों की रक्षा के उपायों को किस प्रकार विचार करने के लिए कहता है?)
उत्तरम्- बकः शीतले जले बहुकालपर्यन्तम् अविचल: ध्यानमग्नः स्थितप्रज्ञ इव स्थित्वा सर्वेषां वन्यजन्तूनां रक्षोपायान् चिन्तयितुं कथयति।
(बगुला शीतल जल में बहुत समय तक स्थिर, ध्यानमग्न होता हुआ ‘स्थितप्रज्ञ’ (तपस्वी) के समान स्थित होकर सभी वन्यजन्तुओं की रक्षा के उपायों को सोचने के लिए कहता है।)
(ग) अन्ते प्रकृतिमाता प्रविश्य सर्वप्रथमं किं वदति?
(अन्त में प्रकृति माता प्रवेश करके सबसे पहले क्या कहती है?)
उत्तरम्-अन्ते प्रकृतिमाता प्रविश्य सर्वप्रथमं कथयति यत् “भोः भोः प्राणिनः यूयं सर्वे एव में सन्ततिः । कथं मिथः कलहं कुर्वन्ति? वस्तुतः सर्वे वन्यजीविनः अन्योन्याश्रिताः सन्ति।”
(अन्त में प्रकृति माता प्रवेश करके सबसे पहले कहती है कि- “हे प्राणियों! तुम सभी मेरी सन्तान हो। क्यों आपस में कलह कर रहे हो? वास्तव में सभी वन्यजीव एक-दूसरे पर आश्रित हैं।
(घ) यदि राजा सम्यक् न भवति तदा प्रजा कथं विप्लवेत्?
(यदि राजा उचित नहीं होता है तब प्रजा किस प्रकार डूब जाती है?)
उत्तरम्- यदि राजा सम्यक् न भवति तदा प्रजा अकर्णधारा नौरिव जलधौ विप्लवेत्।
(यदि राजा उचित नहीं होता है तब प्रजा मल्लाह (चालक) से रहित नाव (नौका) जिस प्रकार समुद्र में डूब जाती है, उसी प्रकार डूब (नष्ट) हो जाती है।
(ङ) मयूरः कथं नृत्यमुद्रायां स्थितः भवति?
(मौर किस प्रकार से नृत्य की मुद्रा में स्थित होता है?)
उत्तरम्- मयूरः पिच्छानुद्घाट्य नृत्यमुद्रायां स्थितः भवति।
(मौर पंखों को फैलाकर नृत्य की मुद्रा में स्थित होता है।)
(च) अन्ते सर्वे मिलित्वा कस्य राज्याभिषेकाय तत्पराः भवति?
(अन्त में सभी मिलकर किसका राज्याभिषेक करने के लिए तत्पर हो जाते हैं?)
उत्तरम्- अन्ते सर्वे मिलित्वा उलूकस्य राज्याभिषेकाय तत्पराः भवन्ति।
(अन्त में सभी मिलकर उल्लू का राज्याभिषेक करने के लिए तत्पर हो जाते हैं।
(छ) अस्मिन् नाटके कति पात्राणि सन्ति?
(इस नाटक में कितने पात्र हैं)
उत्तरम्- अस्मिन् नाटके विविध पशुपक्षिण: दश पात्राणि सन्ति।
(इस नाटक में विभिन्न पशु-पक्षी दस पात्र हैं।)
प्रश्न 3. Class 10th Sanskrit chapter 7 solution
रेखांकितपदमाधुत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
(क) सिंहः वानराभ्यां स्वरक्षायाम् असमर्थः एवासीत्।
(ख) गजः वन्यपशून् तुदन्तं शण्डेन पोथयित्वा मारयति।
(ग) वानरः आत्मानं वनराजपदाय योग्यः मन्यते।
(घ) मयूरस्य नृत्यं प्रकृते: आराधना।
(ङ) सर्वे प्रकृतिमातरं प्रणमन्ति।
उत्तरम्- Class 10th Sanskrit chapter 7 solution
(क) सिंहः वानराभ्यां कस्याम् असमर्थः एवासीत्?
(ख) गजः वन्यपशून् तुदन्तं केन पोथयित्वा मारयति?
(ग) वानरः आत्मानं कस्मै योग्यः मन्यते?
(घ) मयूरस्य नृत्यं कस्याः आराधना?
(ङ) सर्वे काम् प्रणमन्ति?
प्रश्न 4. Class 10th Sanskrit chapter 7 solution
शुद्धकथनानां समक्षम् आम् अशुद्धकथनानां च समक्षं न इति लिखत-
(क) सिंहः आत्मानं तुदन्तं वानरं मारयति ।
(ख) का का इति बकस्य ध्वनिः भवति।
(ग) काकपिकयोः वर्णः कृष्णः भवति।
(घ) गज: लघुकायः निर्बलः च भवति।
(ङ) मयूरः बकस्य कारणात् पक्षिकुलम् अवमानितं मन्यते।
(च) अन्योन्यसहयोगेन प्राणिनाम् लाभः जायते।
उत्तरम्- Class 10th Sanskrit chapter 7 solution
(क) न
(ख) न
(ग) आम्
(घ) न
(ङ) आम्
(च) आम्।
प्रश्न 5. Class 10th Sanskrit chapter 7 solution
मञ्जूषातः समुचितं पदं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत-
स्थितप्रज्ञः, यथासमयम्, मेध्यामध्यभक्षकः, अहिभुक्, आत्मश्लाघाहीनः, पिकः
(क) काकः ………………….. भवति।
(ख) ……….. परभृत् अपि कथ्यते।
(ग) बकः अविचल: …………… इव तिष्ठति।
(घ) मयूरः …………………… इति नाम्नाऽपि ज्ञायते।
(ङ) उलूक: ………….. पदनिर्लिप्तः चासीत्।
(च) सर्वेषामेव महत्त्वं विद्यते ……………….. ।
उत्तरम्- Class 10th Sanskrit chapter 7 solution
(क) मेध्यामेध्यभक्षकः
(ख) पिकः
(ग) स्थितप्रज्ञः
(घ) अहिभुक्
(ङ) आत्मश्लाघाहीनः
(च) यथासमयम्।
प्रश्न 6. Class 10th Sanskrit chapter 7 solution
वाच्यपरिवर्तनं कृत्वा लिखत-
उदाहरणम्- क्रुद्धः सिंहः इतस्ततः धावति गर्जति च।
– कूद्धेन सिंहन इतस्ततः धाव्यते गर्जते च।
(क) त्वया सत्यं कथितम्।
(ख) सिंहः सर्वजन्तून् पृच्छति।
(ग) काकः पिकस्य संततिं पालयति।
(घ) मयूरः विधात्रा एव पक्षिराज: वनराजः वा कृतः।
(ङ) सर्वेः खगैः कोऽपि खगः एव वनराजः कर्तुमिष्यते स्म।
(च) सर्वे मिलित्वा प्रकृतिसौन्दर्याय प्रयत्नं कुर्वन्तु ।
उत्तरम्- Class 10th Sanskrit chapter 7 solution
(क) त्वम् सत्यम् अकथयः।
(ख) सिंहेन सर्वजन्तवः पृच्छ्यन्ते।
(ग) काकेन पिकस्य सन्ततिः पाल्यते।
(घ) मयूर विधाता एव पक्षिराजं वनराजं वा कृतवान्।
(ङ) सर्वे खगाः कमपि खगम् एव वनराजं कर्तुमिच्छन्ति स्म।।
(च) सर्वेः मिलित्वा प्रकृतिसौन्दर्याय प्रयत्नः क्रियते।
प्रश्न 7. Class 10th Sanskrit chapter 7 solution
समासविग्रहं समस्तपदं वा लिखत-
(क) तुच्छजीवैः ……………… ।
(ख) वृक्षोपरि ………………… ।
(ग) पक्षिणां सम्राट ……………….. ।
(घ) स्थिता प्रज्ञा यस्य सः ………………. ।
(ङ) अपूर्वम् ………………. ।
(च) व्याघ्रचित्रकौ ……………. ।
उत्तरम्- Class 10th Sanskrit chapter 7 solution
(क) तुच्छै: जीवैः।
(ख) वृक्षस्य उपरि।
(ग) पक्षिसम्राट्।
(घ) स्थितप्रज्ञः।
(ङ) न पूर्वम् इति।
(च) व्याघ्रश्च चित्रकश्च ।
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Sanskrit class 10 chapter 7 pdf सप्तमः पाठः सौहार्दं प्रकृतेः शोभा (सौहार्दं प्रकृति की शोभा है) Click Here to Download
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तराणि
भावार्थ-लेखनम्
प्रश्न:- अधोलिखितश्लोकानां संस्कृते भावार्थं लिखत-
(i) Class 10th Sanskrit chapter 7 solution
यो न रक्षति ………………………… कृतान्तो न संशयः॥
उत्तरम्- भावार्थ:- य: राजा भूत्वाऽपि सदैव शत्रुभिः पीडितानां भयभीतानां च प्राणिनां रक्षा न करोति, सः राजा निस्सन्देहं साक्षात् यमराजः एव मन्यते।
(ii) Class 10th Sanskrit chapter 7 solution
काकः कृष्ण: पिक: ……………………….. काकः काकः पिक: पिकः॥
उत्तरम- भावार्थ:- वर्णदृष्ट्या तु काकपिकयोः कोऽपि भेदः न दृश्यते। काकस्य वर्णः कृष्णः भवति तथा पिकस्य (कोकिलस्य) अपि वर्णः कृष्णः भवति। तयोः भेदः तु वसन्तसमये एव दृश्यते, तदा पिकस्य ध्वनिः अतिमधुरा, चित्ताकर्षका च भवति, किन्तु काकस्य ध्वनिः अतीव कर्कशा भवति। वस्तुतः कोऽपि गुणेनैव प्रियः अप्रियः वा भवति न तु रूपेण।
(iii) Class 10th Sanskrit chapter 7 solution
यदि न स्यान्नरपतिः ……………………….. विप्लवेतेह नौरिव॥
उत्तरम- भावार्थ:- अस्मिन् संसारे यदि राजा समुचितरूपेण प्रजायाः नेतृत्वं न करोति तदा तस्य प्रजाः तथैव अत्र निमज्जेत् यथा विना चालक मल्लाह वा नौका समुद्रे निमज्जेत्।
(iv) Class 10th Sanskrit chapter 7 solution
स्वभावरौद्रमत्युग्रं …………………………… सिद्धिर्भविष्यति॥
उत्तरम्- भावार्थ:- स्वभावादेव रौद्रम्, अत्यधिकम् उग्रम्, क्रूरम्, अप्रियवक्तारम् च उलूकं नृपं विधाय कोऽपि लाभः न भविष्यति न च काऽपि सफलता प्राप्यते।
(v) Class 10th Sanskrit chapter 7 solution
प्रजासुखे सुखं राज्ञ: …………………………. प्रियं हितम्॥
उत्तरम- भावार्थ:- श्रेष्ठः राजा सदैव प्रजायाः हिताय तत्परो भवति। यतोहि प्रजाया: सुखे एव नृपस्य सुख भवति, प्रजानां कल्याणे एव नृपस्य कल्याणं भवति । स्वस्य एवं प्रियं नृपस्य कृते हितकारकं न भवति, प्रजानां प्रियं सति नृपस्य हितकरं भवति।।
(vi) Class 10th Sanskrit chapter 7 solution
अगाधजलसञ्चारी ………………………. शफरी फुफुरायते॥
उत्तरम्- भावार्थः- पूर्णज्ञानी कदापि गर्वं न करोति, किन्तु अल्पज्ञानी व्यर्थमेव गर्वं करोति। यथाहि असीमितजलधारायां भ्रमन् रोहितः नामकः मत्स्यः कदापि अभिमानं न करोति, किन्तु अंगुष्ठमात्रजलेनैव लघुमत्स्यः इतस्तत: फुफरं करोति।।
(vii) Class 10th Sanskrit chapter 7 solution
प्राणिनां जायते हानि: ………………………. तेषां प्रजायते॥
उत्तरम्- भावार्थ:- सर्वेषां प्राणिनां परस्परं विवादात् तेषां हानिः एव भवति, किन्तु परस्परं सहयोगात् तेषां सर्वेषां प्राणिनां लाभः एव भवति। अत एव अस्माभिः परस्परं सहयोगं करणीयम्, न तु विवादम्।
Class 10th Sanskrit chapter 7 solution
संस्कृतमाध्यमेन प्रश्नोत्तराणि
(अ) Shemushi Sanskrit class 10 solutions chapter 7
एकपदेन उत्तरत-
प्रश्न 1. सिंहस्य पुच्छं कः धुनोति?
उत्तरम्- वानरः।
प्रश्न 2. वानरः कुर्दित्वा कुत्र आरूढः?
उत्तरम्- वृक्षम्।
प्रश्न 3. राजा तु कीदृशः भवति?
उत्तरम्- रक्षकः।
प्रश्न 4. कस्मिन् समये काकः काकः पिकः पिकः भवति?
उत्तरम्- वसन्तसमये।
प्रश्न 5. काकः कस्य सन्तन्तिं पालयति?
उत्तरम्- पिकस्य।
प्रश्न 6. ‘स्थितप्रज्ञ‘ इव कः शीतले जले तिष्ठति?
उत्तरम्- बकः।
प्रश्न 7. ‘अहिभुक्‘ कः कथ्यते?
उत्तरम्- मयूरः।
प्रश्न 8. ‘सर्वे वन्यजीविनः अन्योन्याश्रिताः‘ इति का वदति?
उत्तरम्- प्रकृतिमाता।
प्रश्न 9. केन समयं वृथा न यापयन्तु?
उत्तरम्- कलहेन।
प्रश्न 10. प्रजानां हिते कस्य हितम् ?
उत्तरम्- राज्ञः।
(ब) Shemushi Sanskrit class 10 solutions chapter 7
पूर्णवाक्येन उत्तरत-
प्रश्न 1. प्रीतिलक्षणं कतिविधम् ?
उत्तरम्- प्रीतिलक्षणं षड्विधम् ।
प्रश्न 2. परस्परविवादतः केषां हानिः जायते?
उत्तरम्- परस्परविवादतः प्राणिनां हानिः जायते।
प्रश्न 3. प्राणिनां लाभ: केन प्रजायते?
उत्तरम्- अन्योन्यसहयोगेन प्राणिनां लाभः प्रजायते ।
प्रश्न 4. सर्वेवन्यजीवा: कां प्रणमन्ति?
उत्तरम्- सर्वेवन्यजीवाः प्रकृतिमातरं प्रणमन्ति।
प्रश्न 5. राज्ञः किम् न हितम् ?
उत्तरम्- राज्ञः आत्मप्रियं न हितम्।
प्रश्न 6. ‘सौहार्दै प्रकृतेः शोभा‘ पाठानुसारेण अस्माभिः स्वकल्याणाय कथं भाव्यम्?
उत्तरम्- अस्माभिः स्वकल्याणाय परस्परं स्नेहेन मैत्रीपूर्णव्यवहारेण च भाव्यम्।
प्रश्न 7. कः राजा कृतान्तः मन्यते ?
उत्तरम्- यः राजा शत्रुभिः पीड्यमानान् वित्रस्तान् जन्तून् न रक्षति सः कृतान्त: मन्यते ।
प्रश्न 8. काकः केन वातावरणमाकुलीकरोति?
उत्तरम्- काकः ‘का-का’ इति कर्कशध्वनिना वातावरणमाकुलीकरोति।
प्रश्न 9. बकः कान् छलेन अधिगृह्य क्रूरतया भक्षयति?
उत्तरम्- बकः वराकान् मीनान् छलेन अधिगृह्य क्रूरतया भक्षयति।
प्रश्न 10. कस्य नृत्यं तु प्रकृतेः आराधना?
उत्तरम्- मयूरस्य नृत्यं तु प्रकृतेः आराधना।
Shemushi Sanskrit class 10 solutions chapter 7
प्रश्ननिर्माणम्
प्रश्नः- Class 10th Sanskrit chapter 7 solution
रेखाङ्कितपदानि अधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
- वानरः आगत्य तस्य पुच्छं धुनोति।
- वानरः कुर्दित्वा वृक्षमारूढः ।
- वानराः वारं वारं सिंह: तुदन्ति ।
- पक्षिणः हर्षमिश्रितं कलरवं कुर्वन्ति।
- त्वं वनराजः भवितुं सर्वथाऽयोग्यः।
- राजा तु रक्षकः भवति।
- त्वं कर्कशध्वनिना वातावरणमाकुलीकरोषि।
- अनृतं वदसि चेत् काकः दशेत्।।
- काकचेष्ट: विद्यार्थी एव आदर्शच्छात्रः मन्यते।
- वसन्तसमये पिककाकयोः भेदः दृश्यते।
- गजः वृक्षमेव स्वशुण्डेन आलोडयितुमिच्छति।
- वन्यजन्तूनां रक्षायै वयमेव क्षमाः।
- बकः रक्षोपायान् क्रियान्वितान् कारयिष्यति।
- मम राज्याभिषेकाय तत्पराः भवन्तु।
- विधात्रा एवाहं पक्षिराजः कृतः।
- व्याघ्रचित्रकौ नदीजलं पातुमागतौ ।
- यूयम् सर्वे एव मे सन्ततिः।
- कलहेन समयं वृथा न यापयन्तु।
- प्रजासुखे राज्ञः सुखम्।
- परस्परविवादतः प्राणिनां हानिः जायते।
उत्तरम्- Shemushi Sanskrit class 10 solutions chapter 7
- वानरः आगत्य कस्य पुच्छं धुनोति?
- कः कुर्दित्वा वृक्षमारूढ़ः?
- वानराः वारं वारं कम् तुदन्ति?
- पक्षिणः हर्षमिश्रितं किम् कुर्वन्ति?
- त्वं कः भवितुं सर्वथाऽयोग्यः?
- राजा तु कः भवति?
- त्वं केन वातावरणमाकुलीकरोषि?
- अनृतं वदसि चेत् कः दशेत्?
- कीदृशः विद्यार्थी एव आदर्शच्छात्रः मन्यते?
- वसन्तसमये कयोः भेदः दृश्यते?
- गजः वृक्षमेव केन आलोडयितुमिच्छति?
- केषां रक्षायै वयमेव क्षमाः?
- बकः कान् क्रियान्वितान् कारयिष्यति?
- कस्य राज्याभिषेकाय तत्पराः भवन्तु?
- केन एवाहं पक्षिराजः कृतः?
- कौ नदीजलं पातुमागतौ?
- यूयम् सर्वे एव कस्य सन्ततिः?
- केन समयं वृथा न यापयन्तु?
- प्रजासुखे कस्य सुखम्?
- परस्पर विवादतः केषां हानिः जायते?