NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 1
NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 1, हमारे विषय विशेषज्ञों द्वारा तैयार किए गए एनसीईआरटी समाधान एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तकों में शामिल सभी समस्याओं का सटीक, आसान समाधान प्रदान करते हैं। पाठ्यपुस्तक समाधानों का अभ्यास करने से छात्रों को गति प्राप्त करने और समस्या को सुलझाने के कौशल को आसानी से हासिल करने में मदद मिलती है।
NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 1, प्रस्तुत पाठ आधुनिक संस्कृत कवि हरिदत्त शर्मा के रचना संग्रह ‘लसल्लतिका’ से संकलित है। इसमें कवि ने महानगरों की यान्त्रिक-बहुलता से बढ़ते प्रदूषण पर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा है कि यह लौहचक्र तनमन का शोषक है, जिससे वायुमण्डल और भूमण्डल दोनों मलिन हो रहे हैं।
Class 10 Sanskrit Chapter 1 Hindi translation
संस्कृतम् कक्षा 10 पठित अवबोधनम्
शेमुषी द्वितीयो भागः मङ्गलम्
पाठ परिचय- किसी भी शुभ कार्य को आरम्भ करने से पूर्व उस कार्य की निर्विघ्न समाप्ति के लिए ईश-वन्दना करना मंगलाचरण कहलाता है। भारतीय संस्कृति में काफी प्राचीन काल से ईश-वन्दना करने की परम्परा रही है। इस ईश-वन्दना में प्रायः देवी-देवताओं के माहात्म्य का गुणगान किया जाता है अथवा ईश-वन्दना करने वालों द्वारा अपने और अपने परिजनों सहित अपने वैभव (धन-सम्पत्ति) आदि की रक्षा और कल्याण की कामना की जाती है।
प्रस्तुत पाठ में ‘मङ्गलम्‘ के रूप में वेदों से दो मन्त्र संकलित हैं। इनमें प्रथम मन्त्र यजुर्वेद से तथा द्वितीय मन्त्र ऋग्वेद से ग्रहण किया गया है। प्रथम मन्त्र में जहाँ ईश-वन्दना करने वालों के द्वारा सौ वर्ष तक जीने की कामना की गई है, वहीं द्वितीय मन्त्र में वैचारिक सात्विकता और वैभव वृद्धि की कामना की गई है।
(1) Class 10 Sanskrit Chapter 1 Hindi translation
ॐ तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुकमुच्चरत् ।
पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतम् ।
शृणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतम् ।
अदीनाः स्याम शरदः शतम्। भूयश्च शरदः शतात् ॥ (यजुर्वेद 36.24)
अन्वय- ॐ देवहितं तत् शुक्रं चक्षुः पुरस्तात् उच्चरत् । (वयं) शतं शरदः पश्येम। (वयं) शतं शरदः जीवेम। (वयं) शतं शरदः शृणुयाम। (वयं) शतं शरदः प्रब्रवाम। (वयं) शतं शरदः अदीनाः स्याम। च शतात् शरदः भूयः।
कठिन शब्दार्थ- देवहितम् = देवताओं द्वारा धारण किया हुआ। चक्षुः = नेत्र, आँख। पुरस्तात् = आगे, सर्वप्रथम, पहले स्थान पर, पूर्व में। शरदः = वर्ष । अदीनाः = जो दीन नहीं हों, स्वावलम्बी। भूयः = फिर से।
हिन्दी अनुवाद/भावार्थ- हे परमपिता परमात्मा! देवों द्वारा निरूपित यह शुक्ल वर्ण का नेत्र रूप (सूर्य) पूर्व दिशा में ऊपर उठ चुका है। हम सब सौ वर्षों तक देखते रहें, सौ वर्षों तक जीते रहें। सौ वर्षों तक सुनते रहें, सौ वर्षों तक शुद्ध रूप से बोलते रहें। सौ वर्षों तक स्वावलम्बी (अदीन) बने रहें और यह सब सौ वर्षों से भी अधिक चलता रहे।
(2) Class 10 Sanskrit Chapter 1 Hindi translation
आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतो
ऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः।
देवा नो यथा सदमिद् वृधेऽसन्
अप्रायुवो रक्षितारो दिवेदिवे॥ (ऋग्वेद 1.89.1)
अन्वय- नः विश्वतः आ भद्राः क्रतवः यन्तु, अदब्धासः, अपरीतास, उद्भिदः (स्युः)। असन् अप्रायुवः । सदमिद् रक्षितारः देवाः दिवेदिवे यथा नः वृधे।
कठिन शब्दार्थ- नः = हमारे लिए। भद्राः = कल्याणकारी। क्रतवः = सङ्कल्प, विचार। यन्तुः = आएँ। विश्वतः = चारों ओर से। उद्भिदः = प्रकट करने वाले।
हिन्दी अनुवाद/भावार्थ- हमारे पास चारों ओर से ऐसे कल्याणकारी विचार आते रहें जो किसी से न दबें, उन्हें कहीं से बाधित न किया जा सके (अपरीतासः) एवं अज्ञात विषयों को प्रकट करने वाले (उद्भिदः) हों। प्रगति को न रोकने वाले (अप्रायुवः) तथा सदैव रक्षा में तत्पर देवगण प्रतिदिन (सदैव) हमारी समृद्धि और कल्याण के लिए तत्पर रहें।
Shemushi Sanskrit class 10 Solutions chapter 1
प्रथमः पाठः शुचिपर्यावरणम् (पवित्र/शुद्ध पर्यावरण) कवि हरिदत्त शर्मा
पाठ परिचय- प्रस्तुत पाठ आधुनिक संस्कृत कवि हरिदत्त शर्मा के रचना संग्रह ‘लसल्लतिका’ से संकलित है। इसमें कवि ने महानगरों की यान्त्रिक-बहुलता से बढ़ते प्रदूषण पर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा है कि यह लौहचक्र तनमन का शोषक है, जिससे वायुमण्डल और भूमण्डल दोनों मलिन हो रहे हैं।
कवि महानगरीय जीवन से दूर, नदीनिर्झर, वृक्षसमूह, लताकुञ्ज एवं पक्षियों से गुजित वन-प्रदेशों की ओर चलने की अभिलाषा व्यक्त करता है।
पाठ के पद्यांशों का अन्वय, कठिन शब्दार्थ एवं सप्रसंग हिन्दी अनुवाद
(1) Class 10 Sanskrit Chapter 1 Hindi translation
दर्वहमत्र जीवितं जातं प्रकृतिरेव शरणम्।
शुचि-पर्यावरणम्॥
महानगरमध्ये चलदनिशं कालायसचक्रम्।
मनः शोषयत् तनः पेषयद् भ्रमति सदा वक्रम्॥
दुर्दान्तैर्दशनैरमुना स्यान्नैव जनग्रसनम् । शचि…॥
अन्वय- अत्र जीवितं दुर्वहं जातम्, प्रकृतिः एव शरणम्। पर्यावरणं शुचि (स्यात्)। महानगरमध्ये कालायसचक्रम् अनिशं चलत, मनः शोषयत, तनुः पेषयद् सदा वक्र भ्रमति। अमुना दुर्दान्तैः दशनैः जनग्रसनं नैव स्यात्। पर्यावरणं शुचि (स्यात्)।
कठिन शब्दार्थ- जीवितम् = जीवन (जीवनम्) । दुर्वहम् = कठिन, दूभर (दुष्करम्) । जातम् = हो गया है (यातम्)। शुचि = पवित्र, शुद्ध (पवित्रम्, शुद्धम्) । कालायसचक्रम् = लोहे का चक्र (लौहचक्रम्) । अनिशम् = दिन-रात (अहर्निशम्)। शोषयत् = सुखाते हुए (शुष्कीकुर्वत्)। तनुः = शरीर (शरीरम्)। पेषयद् = पीसते हुए (पिष्टीकुर्वन्)। वक्रम् = टेढ़ा (कुटिलम्)। अमुना = इससे (अनेन) । दुर्दान्तः = भयानक से (भयङ्करैः)। दशनैः = दाँतों से (दन्तैः)। जनग्रसनम् = मानव विनाश (जनभक्षणम्)।
प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘शुचिपर्यावरणम्’ नामक पाठ से लिया गया है। मूलतः यह पाठ कवि हरिदत्त शर्मा द्वारा रचित काव्य ‘लसल्लतिका‘ से संकलित है। इस अंश में महानगरों में बढ़ते प्रदूषण पर चिन्ता व्यक्त करते हुए कवि कहता है कि
हिन्दी अनुवाद- इस संसार में जीवन अत्यधिक कठिन (दूभर) हो गया है, अतः प्रकृति की ही शरण में जाना चाहिए। पर्यावरण शुद्ध बना रहे। महानगरों के मध्य में प्रदूषणरूपी लौहचक्र दिन-रात चलता हुआ, मन को सुखाता हुआ और शरीर को पीसता हुआ सदा टेढ़ा चलता है। इसके भयानक दाँतों से मानव-विनाश नहीं होना चाहिए। अत: पर्यावरण शुद्ध होना चाहिए।
(2) Class 10 Sanskrit Chapter 1 Hindi translation
कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति शतशकटीयानम्।
वाष्पयानमाला संधावति वितरन्ती ध्वानम्।।
यानानां पङ्क्तयो झनन्ताः कठिन संसरणम्। शुचि…॥
अन्वय- शतशकटीयानं कज्जलमलिनं धूम मुञ्चति। वाष्पयानमाला ध्वानम् वितरन्ती संधावति। हि यानानाम् अनन्ताः पङक्तयः (सन्ति), संसरणं कठिनम् (अस्ति)। शुचि पर्यावरणम् (स्यात् ।।
कठिन शब्दार्थ- शतशकटीयानम् = सैकड़ों मोटरगाड़िया (शकटीयानानां शतम्)। कज्जलमलिनम् = काजल जैसा मलिन (काला) (कज्जलेन मलिनम्)। धूमम् = धुआँ (वाष्पः)। मुञ्चति = छोड़ती है । वाष्पयानमाला = रेलगाड़ी की पंक्ति (वाष्पयानानां पंक्तिः) । ध्वानम् = कोलाहल (ध्वनिम्) । वितरन्ती-देती (ददती)। संधावति = तेज दौड़ती है (तीव्र धावति)। संसरणम् = चलना (सञ्चलनम्।
प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘शुचिपर्यावरणम्’ नामक पाठ से उदत किया गया है। मूलतः यह पाठ कवि हरिदत्त शर्मा द्वारा विरचित काव्य ‘लसल्लतिका’ से संकलित है। इस अंश में महानगरों में वाहनों के कोलाहल एवं धुआँ से बढ़ते हुए प्रदूषण का वर्णन करते हुए कहा गया है कि
हिन्दी अनुवाद- (महानगरों में) सैकड़ों मोटरगाड़ियाँ काजल के समान मलिन (काला) धुआँ छोड़ती रहती हैं। रेलगाड़ियों की पंक्ति कोलाहल करती हुई दौड़ती है। क्योंकि वाहनों की अनन्त पंक्तियाँ हैं, इसलिए चलना भी कठिन हो गया है। अत: पर्यावरण शुद्ध रहना चाहिए।
(3) Class 10 Sanskrit Chapter 1 Hindi translation
वायुमण्डलं भृशं दूषितं न हि निर्मलं जलम्।
कुत्सितवस्तुमिश्रितं भक्ष्यं समलं धरातलम्।।
करणीयं बहिरन्तर्जगति तु बहु शुद्धीकरणम्। शुचि… ॥
अन्वय- (प्रदूषणेन) वायुमण्डलं भृशं दूषितम्, न हि निर्मलं जलम् (अस्ति)। भक्ष्यं कुत्सितवस्तुमिश्रितम् (अस्ति), धरातलं समलम् (अस्ति) । (अतः) जगति तु बहिरन्तः बहुशुद्धीकरणं करणीयम् । शुचि पर्यावरणं स्यात्।
कठिन शब्दार्थ- वायुमण्डलम् = वायुमण्डल (वातावरणम्)। भृशम् = अत्यधिक (अत्यधिकम्) । दृषितम् = दूषित हो गया है (दोषपूर्णम्, अशुद्धम्)। भक्ष्यम् = भोज्य पदार्थ (खाद्यपदार्थम्) | धरातलम् = भूमि (पृथ्वीतलम्)। समलम् = मलयुक्त, गन्दगी से युक्त (मलेन युक्तम्) । जगति = संसार में (संसारे) । बहिः = बाहर से (बाह्यतः)। अन्तः = अन्दर से (आन्तरिकम्)। करणीयम् = करना चाहिए (कर्तव्यम्)।
प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘शुचिपर्यावरणम्’ शीर्षक पाठ से उद्धत है। मूलतः यह पाठ कवि हरिदत्त शर्मा द्वारा रचित ‘लसल्लतिका’ रचना-संग्रह से संकलित है। इस अंश में संसार में अत्यधिक प्रदूषण से सम्पूर्ण वायुमण्डल, जल एवं खाद्य पदार्थ प्रदूषित हो जाने का वर्णन करते हुए कहा गया है कि
हिन्दी अनुवाद- (प्रदूषण के कारण) वायुमण्डल अत्यधिक दृषित हो गया है, क्योंकि जल भी निर्मल नहीं है। खाद्य पदार्थ प्रदूषित वस्तुओं से मिश्रित हैं, सम्पूर्ण भूमि गन्दगी से युक्त है। अतः संसार में अन्दर और बाहर से अत्यधिक शुद्धीकरण करना चाहिए। पर्यावरण की शुद्धता बनी रहे।
(4) Class 10 Sanskrit Chapter 1 Hindi translation
कञ्चित् कालं नय मामस्मान्नगराद् बहुदूरम्।
प्रपश्यामि ग्रामान्ते निर्झर-नदी-पयःपूरम्।।
एकान्ते कान्तारे क्षणमपि मे स्यात सञ्चरणम्। शुचि…॥
अन्वय- कञ्चित् कालं माम् अस्मात् नगराद् बहुदूरम् नय। ग्रामान्ते पयःपूरं निर्झर-नदीम् प्रपश्यामि। एकान्ते कान्तारे क्षणमपि मे सञ्चरणं स्यात्। पर्यावरणं शुचि (स्यात्)।
कठिन शब्दार्थ- कालम् = समय (समयः) । नय = ले जाओ (गमय, प्रापय)। ग्रामान्ते – गाँव की सीमा। पयःपूरम् = जल से भरा हुआ तालाब (जलाशयम)। निर्झर – झरना (प्रपात)। प्रपश्यामि = अच्छी प्रकार से देखूगा (सम्यक्तया अवलोकयामि)। कान्तारे = जंगल में (वन) । स्यात् = होना चाहिए (भवेत्)।
प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘शुचिपर्यावरणम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। मूलतः यह पाठ कवि हरिदत्त शर्मा द्वारा रचित ‘लमल्लतिका’ रचना-संग्रह से संकलित है। इस अंश में कवि महानगरों के प्रदूषित वातावरण से दूर गांव की सीमा पर एवं वन-प्रदेश के पवित्र वातावरण में जाने की प्रेरणा देता हुआ कहता है कि
हिन्दी अनुवाद- कुछ समय के लिए मुझे इस नगर से बहुत दूर ले जाओ। गांव की सीमा पर मैं जल से भरा हुआ तालाब, झरने व नदी को अच्छी प्रकार से देखूगा। एकान्त जंगल में क्षण भर के लिए भी चाहे मेरा विचरण हो सके। पर्यावरण शुद्ध होना चाहिए।
(5) Class 10 Sanskrit Chapter 1 Hindi translation
हरिततरूणां ललितलतानां माला रमणीया।
कुसुमावलिः समीरचालिता स्यान्मे वरणीया॥
नवमालिका रसालं मिलिता रुचिरं संगमनम् । शचि…॥
अन्वय- (ग्रामान्ते) हरिततरूणां ललितलतानां रमणीया माला, समीरचालिता कुसुमावलिः मे वरणीया स्यात् । नवमालिका रसालं मिलिता, (तयोः) संगमनं रुचिरम् (जातम्)।
कठिन शब्दार्थ- हरिततरूणाम = हरे-भरे वक्षों की (हरितवृक्षाणाम्। ललितलतानाम् = सुन्दर लताओं की (रम्याणाम् वल्लरीणाम्)। रमणीया = सुन्दर (मनोहरा)। समीरचालिता = हवा से हिलती हुई (वायुचालिता)। कुसुमावलिः = फूलों की पंक्ति (पुष्पाणाम् पंक्तिः)। मे = मेरे लिए (मम)। वरणीया = ग्रहण करने योग्य (वरणयोग्या, ग्रहणीया)। नवमालिका = आम्र-मञ्जरी (आम्रमजरी)। रसालम् = आम (आम्रम्)। संगमनम् = मिलना (मिलनम्)। रुचिरम् = सुन्दर (सुन्दरम्)।
प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः‘ के ‘शुचिपर्यावरणम्‘ नामक पाठ से उद्धत किया गया है। मूलतः यह पाठ कवि हरिदत्त शर्मा द्वारा रचित ‘लसल्लतिका‘ रचना-संग्रह से संकलित है। इस अंश में महानगरों के प्रदूषित वातावरण से दूर गाँवों की सीमा पर स्थित प्राकृतिक सौन्दर्य का चित्रण किया गया है।
हिन्दी अनुवाद- (गांव की सीमा पर प्रकृति के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि) हरे-भरे वृक्षों की और सुन्दर लताओं की रमणीय पंक्तियाँ तथा वायु से हिलती हुई पुष्यों की पंक्तियाँ मुझे ग्रहण करनी चाहिए अर्थात् इनकी शोभा देखनी चाहिए। आम्रमञ्जरी आम के साथ मिल गई, उनका मिलन बहुत सुन्दर है। अतः पर्यावरण स्वच्छ होना चाहिए। वही एकमात्र मेरा आश्रय है।
(6) Class 10 Sanskrit Chapter 1 Hindi translation
अयि चल बन्धो! खगकुलकलरव गुजितवनदेशम्।
पुर-कलरव सम्भ्रमितजनेभ्यो धृतसुखसन्देशम् ॥
चाकचिक्यजालं नो कुर्याज्जीवितरसहरणम्। शचि… ॥
अन्वय- अयि बन्यो! खगकुलकलरव गुजितवनदेशं चल। पुर-कलरव-सम्भ्रमितजनेभ्यः सुखसन्देशं धृत। जीवितरसहरणं चाकचिक्यजालं नो कुर्यात्।
कठिन शब्दार्थ- खगकुलकलरवः = पक्षियों के समूह की ध्वनि (पक्षिसमूहध्वनिः)। गुजितम् = गूंजते हए (गुज्जायमानम्)। वनदेशम् = वन प्रदेश को (अरण्यप्रदेशम्)। पुरकलरवः = नगर का कोलाहल (नगरस्य कोलाहलः)। सम्भ्रमितम् = भयभीत हुए (भयभीतम्)। जीवितरसहरणम् = जीवन के सुखरूपी रस का हरण (जीवनस्य सखस्यापहरणम्)। चाकचिक्यजालम् = चकाचौंध से युक्त संसार (कृत्रिमं प्रभावपूर्ण जगत्)।
प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः‘ के ‘शुचिपर्यावरणम्‘ नामक पाठ से उद्धत किया गया है। मूलतः यह पाठ कवि हरिदत्त शर्मा द्वारा रचित ‘लसल्लतिका‘ रचना-संग्रह से संकलित है। इस अंश में महानगरों के कोलाहलमय प्रदूषित वातावरण को त्यागकर पक्षियों की मधुर ध्वनि से पवित्र वन-प्रदेश में जाने की प्रेरणा दी गई है।
हिन्दी अनुवाद- (कवि कहता है कि) हे बन्धु! पक्षियों के समूह की ध्वनि से गुज्जायमान वन-प्रदेश में चलो। नगर के कोलाहल से भ्रमित लोगों के लिए सुख का सन्देश दो। चकाचौंध से यह संसार (कहीं) जीवन के आनन्द को नष्ट न कर दे। अतः शुद्ध पर्यावरण ही एकमात्र आश्रय है।
(7) Class 10 Sanskrit Chapter 1 Hindi translation
प्रस्तरतले लतातरुगुल्मा नो भवन्तु पिष्टाः।।
पाषाणी सभ्यता निसर्गे स्यान्न समाविष्टा ।।
मानवाय जीवनं कामये नो जीवन्मरणम्। शुचि… ||
अन्वय- लतातरुगुल्मा प्रस्तरतले पिष्टाः नो भवन्तु। पाषाणी सभ्यता निसर्गे समाविष्टा न स्यात, कामये, नो जीवन्मरणम्।
कठिन शब्दार्थ- लतातरुगुल्मा = लता, वृक्ष और झाड़ा (लताश्च तरवश्च गुल्माश्च)। प्रस्तरतले = पत्थरों के तल पर (शिलातले)। पिष्टाः = दबी हुई (दमिता)। पाषाणी = पर्वतमयी-पथरीली। निसर्गे = प्रकृति में (प्रकत्याम)। न स्यात् = नहीं होनी चाहिए (नहि भवेत्)। कामये = कामना करता हूँ (कामनां करोमि।
प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः‘ के ‘शुचिपर्यावरणम्‘ नामक पाठ से उद्धत किया गया है। मूलतः यह पाठ कवि हरिदत्त शर्मा द्वारा रचित ‘लसल्लतिका‘ रचना-संग्रह से संकलित है। इस अंश में कवि मानव-कल्याण और प्रकृति की पवित्रता की कामना करते हुए कहता है कि
हिन्दी अनुवाद- लता, वृक्ष और झाड़ी पत्थरों के नीचे दबे हुए नहीं होने चाहिए। पथरीली सभ्यता प्रकृति में समाविष्ट नहीं होनी चाहिए। मैं मानव के लिए जीवन की कामना करता हूँ, जीवन के नष्ट होने की नहीं। अत: हमारा पर्यावरण शुद्ध बना रहना चाहिए।
शुचिपर्यावरणम् पाठ के प्रश्न उत्तर
पाठ्यपुस्तकस्य प्रश्नोत्तराणि Class 10 Sanskrit Chapter 1
प्रश्न 1. एकपदेन उत्तरं लिखत
(क) अत्र जीवितं कीदृशं जातम्?
उत्तरम्- दुवहम्।
(ख) अनिशं महानगरमध्ये किं प्रचलति?
उत्तरम्- कालायसचक्रम्।
(ग) कुत्सितवस्तुमिश्रितं किमस्ति?
उत्तरम्- भक्ष्यम्।
(घ) अहं कस्मै जीवनं कामये?
उत्तरम्- मानवाय।
(ङ) केषां माला रमणीया?
उत्तरम्- हरिततरूणां ललितलतानाम्।
प्रश्न 2. Class 10 Sanskrit Chapter 1
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(क) कविः किमर्थं प्रकृतेः शरणम् इच्छति?
(कवि किसलिए प्रकृति की शरण चाहता है?)
उत्तरम्- अत्र महानगरे जीवितं दुर्वहं जातम्, अतः कविः प्रकृतेः शरणम् इच्छति।
(यहाँ महानगर में जीवन कठिना/दूभर हो गया है, इसलिए कवि प्रकृति की शरण चाहता है।)
(ख) कस्मात् कारणात् महानगरेषु संसरणं कठिनं वर्तते?
(किस कारण से महानगरों में चलना कठिन है?)
उत्तरम्- महानगरेषु धूमं मुञ्चन्ती कोलाहलं च वितरन्ती अनन्ताः यानानां पङ्क्तयः सन्ति, अस्मात् कारणात् तत्र संसरणं कठिनं वर्तते।
(महानगरों में धुआं छोड़ती हुई और कोलाहल करती हुई अनन्त वाहनों की कतारें हैं, इसलिए वहाँ चलना कठिन है।)
(ग) अस्माकं पर्यावरणे किं किं दूषितम् अस्ति?
(हमारे पर्यावरण में क्या-क्या दूषित हैं?)
उत्तरम्- अस्माकं पर्यावरणे वायुमण्डलम्, जलम, भक्ष्यम् सम्पूर्णञ्च धरातलं दूषितम् अस्ति।
(हमारे पर्यावरण में वायुमण्डल, जल, खाने योग्य वस्तुएँ और सम्पूर्ण पृथ्वी ही दूषित है।)
(घ) कविः कुत्र सञ्चरणं कर्तुम् इच्छति?
(कवि कहाँ चलना चाहता है?)
उत्तरम्- कषिः ग्रामाते एकान्ते कान्तारे सम्परणं कर्तुम् इच्छति।
(कवि गाँव के बाहर एकान्त वन में चलना चाहता है।)
(ङ) स्वस्थजीवनाय कीदृशे वातावरणे भ्रमणीयम्?
(स्वस्थ जीवन के लिए किस प्रकार के वातावरण में भ्रमण करना चाहिए?)
उत्तरम्- स्वस्थजीवनाय शुद्धवातावरणे भ्रमणीयम्।
(स्वस्थ जीवन के लिए शुद्ध वातावरण में भ्रमण करना चाहिए।)
(च) अन्तिमे पद्यांशे कवेः का कामना अस्ति?
(अन्तिम पद्य में कवि की क्या कामना है)
उत्तरम्- अन्तिम पर्याशे कविः मानवाय जीवनस्य कामना करोति।
(अन्तिम पद्य में कवि ने मानव के लिए जीवन की कामना की है।)
प्रश्न 3. Class 10 Sanskrit Chapter 1
सन्धि/सन्धिविच्छेदं कुरुत
उत्तरम्
(क) प्रकृतिः + एव = प्रकृतिरेव
(ख) स्यात् + न + एव = स्यान्नैव
(ग) हि + अनन्ताः = ह्यनन्ताः
(घ) बहिः अन्तः + जगति = बहिरन्तर्जगति
(ङ) अस्मात् + नगरात् = अस्मान्नगरात्
(च) सम् + चरणम् = सञ्चरणम्
(छ) धूमम + मुञ्चति = धूमं मुञ्चति
प्रश्न 4. Class 10 Sanskrit Chapter 1
अधोलिखितानाम् अव्ययानां सहायतया रिक्तस्थानानि पूरयत
भृशम, यत्र, तत्र, अत्र, अपि, एव, सदा, बहिः।
(क) इदानी वायुमण्डलं………………… प्रदुषितमस्ति।
(ख) ……………….. जीवनं दुर्वहम् अस्ति।
(ग) प्राकृतिक वातावरणे क्षणं सचरणम् ……………….. लाभदायकं भवति।
(घ) पर्यावरणस्य संरक्षणम् ……………….. प्रकृतेः आराधना।
(ङ) ……………… समयस्य सदुपयोगः करणीयः।
(च) भूकम्पित-समये………………. गमनमेव उचितं भवति।
(छ) ……………….. हरीतिमा ……………….. शुचि पर्यावरणम् ।
उत्तरम्-
(क) इदानी वायुमण्डलं भृशम् प्रदूषितमस्ति।
(ख) अत्र जीवनं दुर्वहम् अस्ति।
(ग) प्राकृतिक वातावरणे क्षणं सञ्चरणम् अपि लाभदायकं भवति।
(घ) पर्यावरणस्य संरक्षणम् एव प्रकृतेः आराधना।
(ङ) सदा समयस्य सदुपयोगः करणीयः।
(च) भूकम्पित-समये बहिः गमनमेव उचितं भवति।
(छ) यत्र हरीतिमा तत्र शुचि पर्यावरणम्।
प्रश्न 5. Class 10 Sanskrit Chapter 1
(अ) अधोलिखितानां पदानां पर्यायपदं लिखत
(क) सलिलम् …………..
(ख) आम्रम् ……………….
(ग) वनम् ………………….
(घ) शरीरम् ………………
(अ) कुटिलम ……………..
(च) पाषाणः ………….
उत्तरम्-
(क) सलिलम् – जलम्
(ख) आम्रम् – रसालम्
(ग) वनम् – काननम्
(घ) शरीरम् – तनुः
(3) कुटिलम् – वक्रम्
(च) पाषाणः – प्रस्तरमः
(आ) Class 10 Sanskrit Chapter 1
अधोलिखितपदानां विलोमपदानि पाठात् चित्वा लिखत
(क) सुकरम् ………..
(ख) दूषितम् ……………
(ग) गृहणन्ती …………….
(घ) निर्मलम् ……………….
(ङ) दानवाय ………………..
(च) सान्ताः ……………..
उत्तरम्-
(क) सुकरम् – दुर्वहम्
(ख) दूषितम् – भूषितम्
(ग) गृहणन्ती – वितरन्ती
(घ) निर्मलम् – समलम्
(ङ) दानवाय – मानवाय
(च) सान्ताः – अनन्ता
प्रश्न 6. Class 10 Sanskrit Chapter 1
उदाहरणममुसृत्य पाठात् चित्वा च समस्तपदानि समासनाम च लिखत
यथा- विग्रह पदानि समस्तपदम् समासनाम
उत्तरम्-
(क) मलेन सहितम्
समस्तपदम् – समलम्
समासनाम – अव्ययीभाव
(ख) हरिता: च ये लरवः (तेषां)
समस्तपदम् – हरिततरूणाम्
समासनाम – कर्मधारय
(ग) ललिताः च या: लताः (तासाम्)
समस्तपदम् – ललितलतानाम्
समासनाम – कर्मधारय
(घ) नवा मालिका
समस्तपदम् – नवमालिका
समासनाम – कर्मधारय
(ङ) धृतः सुखसन्देश: येन (तम्)
समस्तपदम् – धृतसुखसन्देशम्
समासनाम – बहुव्रीहि
(च) कज्जलम् इव मलिनम्
समस्तपदम् – कज्जलमलिनम्
समासनाम – कर्मधारय
(छ) दुर्दान्तैः दशनैः
समस्तपदम् – दुर्दान्तदशनैः
समासनाम – र्मधारय
प्रश्न 7. Class 10 Sanskrit Chapter 1
रेखाकित-पदमाधृत्य प्रश्ननिर्मार्ण कुरुत
(क) शकटीयानम् कन्जलमलिनं धर्म मुञ्चति।
(ख) उद्याने पक्षिणां कलरवं चेतः प्रसादयति।
(ग) पाषाणीसभ्यतायां लतातरुगुल्माः प्रस्तरतले पिष्टाः सन्ति।
(घ) महानगरेषु वाहनानाम् अनन्ताः पङ्क्तयः धायन्ति ।
(ड) प्रकृत्याः सन्निधी वास्तविक सुखं विद्यते ।
उत्तरम- प्रश्ननिर्माणम
(क) शकटीयानम् कीदृर्श धर्म मुञ्चति?
(ख) उद्याने केषां कलरव चेतः प्रसादयति?
(ग) पाषाणीसभ्यतायां के प्रस्तरतले पिष्टाः सन्ति?
(घ) कुत्र बाहनानाम् अनन्ताः पङ्क्तयः थावन्ति?
(3) कस्याः सन्निधौ वास्तविकं सुखं विद्यते?
योग्यताविस्तारः NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 1
समास
समसनं समासः
समास का शाब्दिक अर्थ होता है-संक्षेप। दो या दो से अधिक शब्दों के मिलने से जो नया और संक्षिप्त रूप बनता है वह समास कहलाता है। समास के मुख्यतः चार भेद हैं
- अव्ययीभाव समास
- तत्पुरुष
- बहुब्रीहि
- द्वंद्व
अव्ययीभाव Class 10 Sanskrit Chapter 1
इस समास में पहला पद अव्यय होता है और वही प्रधान होता है और समस्तपद अव्यय बन जाता है।
यथा- निर्मक्षिकम- मक्षिकाणाम् अभावः।
यहाँ प्रथम पद निर है और द्वितीयपद मक्षिका है। यहाँ मक्षिका की प्रधानता न होकर मक्षिका का अभाव प्रधान है, अतः यहाँ अव्ययीभाव समास है। कुछ अन्य उदाहरण देखें
(i) उपग्रामम – ग्रामस्य समीपे – (समीपता की प्रधानता)
(ii) निर्जनम् जनानाम् अभावः – (अभाव की प्रधानता)
(iii) अनुरथम् रथस्य पश्चात् – (पश्चात् की प्रधानता)
(iv) प्रतिगृहम् गृहं गृहं प्रति – (प्रत्येक की प्रधानता)
(v) यथाशक्ति शक्तिम् अनतिक्रम्य – (सीमा की प्रधानता)
(vi) सचक्रम चक्रेण सहितम् – (सहित की प्रधानता)
तत्पुरुष ‘प्रायेण उत्तरपदप्रधानः तत्पुरुषः
‘इस समास में प्रायः उत्तरपद की प्रधानता होती है और पूर्व पद उत्तरपद के विशेषण का कार्य करता है। समस्तपद में पूर्वपद की विभक्ति का लोप हो जाता है।यथा- राजपुरुषः अर्थात् राजा का पुरुष। यहाँ राजा की प्रधानता नहोकर पुरुष की प्रधानता है।
(i) ग्रामगतः – ग्रामं गतः।
(ii) शरणागतः – शरणम् आगतः।
(iii) सिंहभीत: – सिंहात् भीतः।
(iv) भयापन्न: – भयम् आपन्नः।
(v) हरित्रातः – हरिणा त्रातः।
तत्पुरुष समास के दो प्रमुख भेद हैं- कर्मधारय और द्विगु।
कर्मधारय Class 10 Sanskrit Chapter 1
इस समास में एक पद विशेष्य तथा दूसरा पद पहले पद का विशेषण होता है। विशेषण विशष्य भाव के अतिरिक्त उपमान उपमेय भाव भी कर्मधारय समास का लक्षण है।
यथा
पिताम्बरम् – पीतं च तत् अम्बरम्।
महापुरुषः – महान् च असौ पुरुषः।
कज्जलमलिनम् – कज्जलम् इव मलिनम्।
नीलकमलम् – नीलं च तत् कमलम्।
मीननयनम् – मीन इव नयनम्।
मुखकमलम् – कमलम् इव मुखम्।
द्विगु Class 10 Sanskrit Chapter 1
‘संख्यापूर्वो द्विगुः’ इस समास में पहला पद संख्यावाची होता है और समाहार (एकत्रीकरण या समूह) अर्थ की प्रधानता होती है।
यथा-
त्रिभुजम् – त्रयाणां भुजानां समाहारः।
इसमें पूर्वपद ‘त्रि’ संख्यावाची है।
पंचपात्रम् – पंचानां पात्राणां समाहारः।
पंचवटी – पंचानां वटानां समाहारः।
सप्तर्षिः – सप्तानां ऋषीणां समाहारः।
चतुर्युगम् – चतुर्णा युगानां समाहारः ।
बहुव्रीहि Class 10 Sanskrit Chapter 1
‘अन्यपदप्रधान: बहब्रीहिः’ इस समास में पूर्व तथा उत्तर पदों की प्रधानता न होकर किसी अन्य पद की प्रधानता होती है।
यथा- पीताम्बरः – पीतम् अम्बरम् यस्य सः (विष्णुः)।
यहाँ न तो पीतम् शब्द की प्रधानता है और न अम्बरम् शब्द की अपितु पीताम्बरधारी किसी अन्य व्यक्ति (विष्णु) की प्रधानता है।
नीलकण्ठः – नीलः कण्ठः यस्य सः (शिवः)।
दशाननः – दश आननानि यस्य सः (रावणः)।
अनेककोटिसारः – अनेककोटि: सारः (धनम्) यस्य सः।
विगलितसमृद्धिम् – विगलिता समृद्धिः यस्य तम् (पुरुषम्)।
प्रक्षालितपादम् – प्रक्षालितौ पादौ यस्य तम् (जनम्)।
द्वन्द्व Class 10 Sanskrit Chapter 1
‘उभयपदप्रधान: द्वन्द्वः’ इस समास में पूर्वपद और उत्तरपद दोनों की समान रूप से प्रधानता होती है। पदों के बीच में ‘च’ का प्रयोग विग्रह में होता है।
यथा-
रामलक्ष्मणौ – रामश्च लक्ष्मणश्च।
पितरौ – माता च पिता च।
धर्मार्थकाममोक्षाः – धर्मश्च, अर्थश्च, कामश्च, मोक्षश्च ।
वसन्तग्रीष्मशिशिराः – वसन्तश्च ग्रीष्मश्च शिशिरश्च।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तराणि NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 1
भावार्थ-लेखनम्
प्रश्न 1. अधोलिखितपद्यानां संस्कृते भावार्थं लिखत
(1) NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 1
दुर्वहमत्र जीवितं जातं ………………………… जनग्रसनम्॥
उत्तरम्– भावार्थ:-
कविः कथयति यत् अस्मिन् संसारे पर्यावरणप्रदूषणात् जीवनम् अतीव दुष्करम् अभवत् । प्रकृतिः एव शरणं वर्तते। कथमपि अस्माकं पर्यावरणं शयं स्यात। महानगरेष अहोरात्र चलत लोहचक्रम् मनः । शुष्काकुवत् शरीर पिष्टीकुर्वत सदेव कुटिल धमति। अस्य भयरः दन्तः कथमपि जनानां विनाशं नैव भवेत् ।।
(2) NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 1
कज्जलमलिनं धूम ……………………………. ” कठिनं संसरणम्॥
उत्तरम्- भावार्थ:-
कविः कथयति यत् अधुना महानगरेष शतशः शकटीयानानि कज्जलसदृशं मलिनं वाष्पं त्यजन्ति । वाष्पयानानां पंक्तिः कोलाहलं कुर्वन्ती तीव्रगत्या धावति । वस्तुतः अत्र असंख्या यानानां पंक्तयः सन्ति, अनेन सञ्चलनं कठिनं जातम्।
(3) NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 1
वायुमण्डलं भृशं …………………………. “बहु शुद्धीकरणम्॥
उत्तरम्- भावार्थ:-
कविः कथयति यत् अधुना प्रदूषणेन वातावरणम् अत्यधिक प्रदूषितं जातम् । जलमपि स्वच्छं नास्ति। खाद्यपदार्थ प्रदूषितपदाथैः समन्वितं वर्तते । पृथ्वीतलं मलयुक्तम् अस्ति। वस्तुतः मानवजीवनाय संसारे बाह्यतः आन्तरिकं च अत्यधिकं शुद्ध कर्तव्यम्।
(4) NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 1
कञ्चित् कालं नय” ………………………………….. “स्यात् सञ्चरणम्।
उत्तरम्- भावार्थ:-
कविः महानगराणां प्रदूषितं वातावरणं दृष्ट्वा कामना करोति यत् मानसिकशान्तये कञ्चित् समयपर्यन्तं माम् अस्मात् नगरात् अतिदूरं नयत्। ग्रामस्य सीमायाम् अहं जलेन परिपूर्ण (जलाशयं), प्रपातं सरितां च द्रष्टुम् इच्छामि। वस्तुतः अहं शुद्धपर्यावरणप्राप्तये एकान्तवनप्रदेशे अल्पकालमपि विचरणं कर्तुम् इच्छामि।
(5) NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 1
प्रस्तरतले लतातरुगुल्मा ………………………. “नो जीवन्मरणम्॥
उत्तरम्- भावार्थ:-
कविः कथयति यत् अद्य लताः, तरवः, गुल्माश्च नष्टाः न शिलातले दमिता न स्युः। कदाचित् प्रस्तरयुगस्य सभ्यतायाः प्रकृती समावेशः न स्यात्। अद्य तेन पाशविकप्रकृतेः प्रसारं भवति, येन मानवजीवनं कठिनं जातम्। अत एवाहं मानवकल्याणाय सर्वेषां जीवनस्य कामनां करोमि, न तु तेषां मरणस्य।
(6) NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 1
अयि चल बन्धो!” ……………………………… जीवितरसहरणम्॥
उत्तरम्- भावार्थ:-
कविः कथयति यत् हे बन्धो! पक्षिसमूहस्य कलरवेण गुञ्जायमानम् अरण्यप्रदेशं प्रति गच्छ। अधुना नगरस्य कोलाहलेन भ्रमित-जनानां कृते भवान् सुखस्य सन्देशं प्रयच्छतु। इदं कृत्रिमं प्रभावपूर्ण जगत् अस्माकं जीवनस्य सुखस्वरूपरसस्य हरणं न कुर्यात् । अर्थात् पर्यावरणप्रदूषणेन मानसिकशान्तिः नष्टा भवति, एतदर्थ पर्यावरणं शुद्ध भवेत्।
संस्कृतमाध्यमेन प्रश्नोत्तराणि NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 1
प्रश्न 1. एकपदेन उत्तरत
(i) किं शुचिः स्यात्?
उत्तरम्- पर्यावरणम्।
(ii) शतशकटीयानं कीदृशं धूम मुञ्चति?
उत्तरम्- कज्जलमलिनम्।
(iii) ध्वानं वितरन्ती का संधावति?
उत्तरम्- वाष्पयानमाला।
(iv) अद्य महानगरेषु संसरणं कीदृशं जातम्?
उत्तरम्- कठिनम्।
(v) अद्य किं भृशं दूषितम् ?
उत्तरम्- वायुमण्डलम्।
(vi) अद्य धरातलं कीदृशं जातम्?
उत्तरम्- समलम्।
(vii) कविः कस्मात् बहुदूर नेतुं कथयति?
उत्तरम्- नगरात्।
(viii) का रसालं मिलिता?
उत्तरम्- नवमालिका।
(ix) अद्य प्रस्तरतले काः पिष्टाः दृश्यन्ते?
उत्तरम्- लतातरूगुल्माः।
(x) ‘शुचिपर्यावरणम्’ इति पाठस्य लेखकः कः?
उत्तरम- कविः हरिदत्तशर्मा।
प्रश्न 2. NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 1
पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) ‘शुचिपर्यावरणम्’ इति पाठः कुतः सङ्कलितोऽस्ति?
उत्तरम्- ‘शुचिपर्यावरणम्‘ इति पाठः आधुनिकसंस्कृतकये; हरिदत्तशर्मणः ‘लमल्लतिका‘ इति रचनासाग्रहात् सङ्कलितोऽस्ति।
(ii) अद्य महानगरेषु किं कुर्वन् सदा लौहचक्रं धमति?
उत्तरम्- अद्य महानगरेषु मनः शोषयत् तनुः पेषयद् च सदा लौहचक्रं प्रमति।
(iii) अद्य के: जनग्रसनं नैव स्यात?
उत्तरम्- अध अमुना प्रदूषणेन दुर्दान्तैर्दशनै: जनग्रसनं नैव स्यात् ।
(iv) प्रदूषणेन भक्ष्यं धरातलं च कीदृशं जातम्?
उत्तरम्– प्रदूषणेन भक्ष्यं कुत्सितवस्तुमिश्रितं धरातलं च समलं जातम् ।
(v) अद्य कुत्र बहु शुद्धीकरणं करणीयम् ?
उत्तरम्- अघ बहिरन्तर्जगति बहु शुद्धीकरणं करणीयम् ।
(vi) कवि: ग्रामान्ते किं द्रष्टुम् इच्छति?
उत्तरम्- कविः ग्रामान्ते निर्झर नदी-पयःपुरं द्रष्टुम् इच्छति।
(vii) कत्र क्षणमपि सञ्चरणं लाभदायकं भवति?
उत्तरम्- एकान्ते कान्तारे प्राकृतिकवातावरणे वा क्षणमपि सञ्चरणं लाभदायकं भवति।
(viii) कवेः का वरणीया स्वात्?
उत्तरम्- कवेः समीरचालिता कुसुमावलिः वरणीया स्यात् ।
(ix) कविः केभ्यः सुखसन्देशं दातुं कथयति?
उत्तरम्- कविः पुर- कलरव-सम्भ्रमितजनेभ्यः सुखसन्देशं दातुं कथयति।
(x) पाषाणी सभ्यता कुत्र समाविष्टा: न स्यात् ?
उत्तरम्- पाषाणी सभ्यता निसर्ग समाविष्टाः न स्यात्।
(xi) कविः पाठेऽस्मिन् के प्रति चलितुं कथयति?
उत्तरम्- कविः पाठेऽस्मिन् खगकुलकलरवगुज्जितं वनप्रदेशं प्रति चलितुं कथयति।
(xii) ‘शुचिपर्यावरणम्’ इति पाठे कविः कस्मै जीवनं कामयते?
उत्तरम्- ‘शुचिपर्यावरणम्‘ इति पाठे कविः मानवाय जीवनं कामयते।
III. अन्वय-लेखनम् NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 1
प्रश्न:-निम्नलिखितपद्यांशस्य अन्वयं मञ्जूषातः समुचितपदानि चित्वा पूरयत
(1) Class 10 Sanskrit Chapter 1
दुर्वहमत्र जीवितं ………………………… ” जनग्रसनम्।।
अन्वयः
अत्र जीवितः (i) …………….. जातम, प्रकृतिः एव शरणम् । पर्यावरणं शुचि: स्यात् । महानगरमध्ये (ii) ……………. अनिशं चलत, मनः (iii) …………. तनुः (iv) ……………..सदा वक्र भ्रमति। अमुना दुर्दान्ते: दशनैः जनप्रसनं नैव स्यात्।
(मञ्जूषा)
शोषयत, दुर्वहं, पेषयद, कालायसचक्रम्
उत्तरम्- (i) दुर्वह, (ii) कालायसचक्रम्, (iii) शोषयत, (iv) पेषयद् ।
[नोट- दिए गए उत्तरों को रिक्त स्थानों में क्रमानुसार लिखकर परीक्षा में पूर्ण अन्वय ही लिखना चाहिए।]
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प्रश्ननिर्माणम् NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 1
प्रश्न:-अधोलिखितवाक्येषु रेखाड़ित-पदमाधृत्य प्रश्ननिर्माण करत
- संसारे जीवितं दुर्वहं जातम्।
- महानगरमध्ये अनिशं कालायसचक्रं प्रचलति।
- कालायसचक्रं तनुः पेषयद् सदा वक्र भ्रमति।
- अमुना दुर्दान्तैः दशनैः जनग्रसनं नैव स्यात्।।
- वाष्पयानमाला ध्यानम् वितरन्ती संधावति।
- महानगरमध्ये संसरणं कठिनं वर्तते?
- प्रदूषणेन धरातलं समलं जातम् ।
- भक्ष्यं कुत्सितवस्तुमिश्रितं वर्तते।
- 9. जगति बहुराद्धीकरणं करणीयम्।
- माम् अस्मात् नगरात् बहुदूरं नय।
उत्तरम्- प्रश्ननिर्माणम्
- संसारे किम् दुर्वहं जातम्?
- कुत्र अनिशं कालायसचक्रं प्रचलति?
- किम् तनुः पेषयद् सदा वक्रं भ्रमति?
- अमुना दुर्दान्तैः दशनैः किम् नैव स्यात्?
- वाष्पयानमाला किम् वितरन्ती संधावति?
- महानगरमध्ये किम् कठिनं वर्तते?
- प्रदूषणेन धरातलं कीदृशं जातम्?
- किम् कुत्सितवस्तुमिश्रितं वर्तते?
- जगति किम् करणीयम्?
- माम् कस्मात् बहुदूरं नय?
Good nice! 👍👍