Class 9 Sanskrit Chapter 10 Jatayo Shouryam

Class 9 Sanskrit Chapter 10 Jatayo Shouryam

दशमः पाठः जटायोः शौर्यम् (जटायु की वीरता) Jatayo Shouryam प्रस्तुत पाठ्यांश आदिकवि वाल्मीकि-प्रणीत रामायणम् के अरण्यकाण्ड से उद्धत किया गया है जिसमें जटायु और रावण के युद्ध का वर्णन है। पंचवटी कानन में सीता का करुण विलाप सुनकर पक्षिश्रेष्ठ जटायु उनकी रक्षा के लिए दौड़े। वे रावण को परदाराभिमर्शनरूप निन्द्य एवं दुष्कर्म से विरत होने के लिए कहते हैं।

दशमः पाठः जटायोः शौर्यम् (जटायु की वीरता)

पाठ परिचय- प्रस्तुत पाठ्यांश आदिकवि वाल्मीकि-प्रणीत रामायणम् के अरण्यकाण्ड से उद्धत किया गया है जिसमें जटायु और रावण के युद्ध का वर्णन है। पंचवटी कानन में सीता का करुण विलाप सुनकर पक्षिश्रेष्ठ जटायु उनकी रक्षा के लिए दौड़े। वे रावण को परदाराभिमर्शनरूप निन्द्य एवं दुष्कर्म से विरत होने के लिए कहते हैं। रावण की अपरिवर्तित मनोवृत्ति को देख वे उस पर भयावह आक्रमण करते हैं।

महाबली जटायु अपने तीखे नखों तथा पञ्जों से रावण के शरीर में अनेक घाव कर देते हैं तथा पञ्जों के प्रहार से उसके विशाल धनुष को खंडित कर देते हैं । टूटे धनुष, मारे गये अश्वों और सारथी वाला रावण विरथ होकर पृथ्वी पर गिर पड़ता है। कुछ ही क्षणों बाद क्रोधांध रावण जटायु पर प्राणघातक प्रहार करता है परन्तु पक्षिश्रेष्ठ जटायु उससे अपना बचाव कर उस पर चञ्चुप्रहार करते हैं, उसके बायें भाग की दशों भुजाओं को क्षत-विक्षत कर देते हैं।

Class 9 Sanskrit Chapter 10 Hindi translation

पाठ का सप्रसंग हिन्दी अनुवाद

(1) Class 9 Sanskrit Chapter 10 Hindi translation

सा तदा करुणा वाचो विलपन्ती सुदुःखिता।

वनस्पतिगतं गृधं ददर्शायतलोचना॥

अन्वय- तदा सा आयतलोचना करुणा वाचः विलपन्ती सुदुःखिता वनस्पतिगतं गृधं ददर्श।

कठिन शब्दार्थ- आयतलोचना = बड़े-बड़े नेत्रों वाली। वाचः = वाणी। विलपन्ती = विलाप करती हुई। वनस्पतिगतम् = वन-पंक्तियों में स्थित। ददर्श = देखा।

प्रसंग- प्रस्तुत श्लोक हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी’ (प्रथमोभागः) के जटायोः शौर्यम्’ नामक पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण’ के अरण्यकाण्ड से संकलित है। इस श्लोक में रावण द्वारा अपहरण करके लंका की ओर ले जाती हुई सीता की करुण दशा का तथा उसके द्वारा पञ्चवटी में स्थित जटायु नामक गिद्ध को देखे जाने का वर्णन हुआ है।

हिन्दी अनुवाद- तब उस बड़े-बड़े नेत्रों वाली, करुणामय वाणी से विलाप करती हुई अत्यन्त दुःखी सीताजी ने पंचवटी के वनों में स्थित जटायु नामक गिद्ध को देखा।

(2) Class 9 Sanskrit Chapter 10 Hindi translation

जटायो पश्य मामार्य ह्रियमाणामनाथवत्।

अनेन राक्षसेन्द्रेण करुणं पापकर्मणा॥

अन्वय- आर्य जटायो ! अनेन राक्षसेन्द्रेण पापकर्मणा अनाथवत् ह्रियमाणां करुणं माम् पश्य।

कठिन शब्दार्थ- राक्षसेन्द्रेण = राक्षसराज (रावण) के द्वारा। अनाथवत् = अनाथ के समान। ह्रियमाणाम् = अपहरण की जाती हुई। पश्य = देखो।

प्रसंग- प्रस्तुत श्लोक हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी’ (प्रथमो भागः) के जटायोः शौर्यम्’ नामक पाठ से उद्धृत है, जो मूलतः महर्षि वाल्मीकि विरचित ‘रामायण’ से संकलित है। इस श्लोक में रावण द्वारा अपहृत सीताजी करुण विलाप करती हुई वन में स्थित जटायु नामक गिद्ध  को देखकर अपनी रक्षा हेतु उसे आवाज लगाती हैं, इसका वर्णन किया गया है।

हिन्दी अनुवाद- हे पूजनीय जटायु ! इस राक्षसराज (रावण) के द्वारा पापकर्म से अनाथ के समान अपहरण करके ले जाई जाती हुई, शोकग्रस्त मुझे (सीता को) देखो।

(3) Class 9 Sanskrit Chapter 10 Hindi translation

तं शब्दमवसुप्तस्तु जटायुरथ शुश्रुवे।

निरीक्ष्य रावणं क्षिप्रं वैदेहीं च ददर्श सः॥

अन्वय- अथ अवसुप्तः तु जटायुः तं शब्दं शुश्रुवे। सः च रावणं निरीक्ष्य क्षिप्रं वैदेहीं ददर्श।

कठिन शब्दार्थ- अवसुप्तः = अल्पनिद्रा में सोए हुए। शुश्रुवे = सुना। निरीक्ष्य = देखकर। क्षिप्रम् = शीघ्र ही। वैदेहीम् = सीता को। ददर्श = देखा।

प्रसंग- प्रस्तुत श्लोक हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी’ (प्रथमो भागः) के जटायोः शौर्यम्’ नामक पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित ‘रामायण’ के ‘अरण्य-काण्ड’ से संकलित है। इस श्लोक में वन में अल्प निद्रा में स्थित जटायु द्वारा रावण द्वारा अपहृत एवं करुण विलाप करती हुई सीताजी को एवं रावण को देखे जाने का वर्णन किया गया है।

हिन्दी अनुवाद- इसके बाद (सीता द्वारा आवाज दिये जाने पर) अल्प निद्रा में सोए हुए जटायु ने सीताजी के उन करुण शब्दों को सुना और उसने रावण को देखकर शीघ्र ही सीताजी को भी देखा।

(4) Class 9 Sanskrit Chapter 10 Hindi translation

ततः पर्वतशृङ्गाभस्तीक्ष्णतुण्डः खगोत्तमः।

वनस्पतिगतः श्रीमान्व्याजहार शुभां गिरम्॥

अन्वय- ततः पर्वतशृङ्गाभः, तीक्ष्णतुण्डः खगोत्तमः  वनस्पतिगतः श्रीमान् शुभां गिरं व्याजहार।

कठिन शब्दार्थ- पर्वतश्रृङ्गाभः = पर्वत के शिखर के समान। तीक्ष्णतुण्डः = कठोर चोंच वाले । खगोत्तमः = पक्षियों में श्रेष्ठ। गिरम् = वचन। व्याजहार = कहे।

प्रसंग- प्रस्तुत श्लोक हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी’ (प्रथमो भागः) के जटायोः शौर्यम्’ नामक पाठ से उद्धृत है। इस श्लोक में जटायु नामक गिद्ध की विशेषताओं का तथा सीता की करुण ध्वनि सुनकर उसके बोलने का वर्णन किया गया है।

हिन्दी अनुवाद- उसके बाद पर्वत के शिखर के समान तीक्ष्ण (कठोर) चोंच वाले, पक्षियों में श्रेष्ठ, वनसमूह में रहने वाले, शोभासम्पन्न (जटायु) ने ये शुभवचन कहे।

(5) Class 9 Sanskrit Chapter 10 Hindi translation

निवर्तय मतिं नीचां परदाराभिमर्शनात्।

न तत्समाचरेद्धीरो यत्परोऽस्य विगर्हयेत्॥

अन्वय- परदाराभिमर्शनात् नीचां मति निवर्तय। धीरः तत् न समाचरेत् यत् परः अस्य विगर्हयेत्।

कठिन शब्दार्थ- परदाराभिमर्शनात् = पराई स्त्री के स्पर्श से। धीरः = बुद्धिमान् । न समाचरेत् = आचरण नहीं करते हैं। परः = दूसरा । विगर्हयेत् = निन्दा करनी चाहिए।

प्रसंग- प्रस्तुत श्लोक हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी’ (प्रथमो भागः) के जटायोः शौर्यम्’ नामक पाठ से उद्धृत है। इस श्लोक में जटायु द्वारा रावण को निन्दनीय (सीता-हरण रूपी) कार्य न करने की प्रेरणा दी गई है। वह रावण से कहता है कि-

हिन्दी अनुवाद- (हे रावण !) पराई स्त्री के स्पर्श से नीच बनी हुई अपनी दुष्ट बुद्धि (दुष्कर्म) को रोको। क्योंकि विवेकी मनुष्य को उस प्रकार का आचरण (दुराचार) नहीं करना चाहिए जिसकी दूसरे लोग निन्दा करते हैं।

(6) Class 9 Sanskrit Chapter 10 Hindi translation

वृद्धोऽहं त्वं युवा धन्वी सरथः कवची शरी।

न चाप्यादाय कुशली वैदेहीं मे गमिष्यसि॥

अन्वय- अहं वृद्धः त्वं च युवा धन्वी सरथः कवची शरी (असि) अपि च मे, कुशली (त्वं) वैदेहीं आदाय न गमिष्यसि।

कठिन शब्दार्थ- धन्वी = धनुर्धर । सरथः = रथ से युक्त। कवची = कवच धारण किया हुआ। शरी = बाण को लिए हुए। वैदेहीम् = सीता को।

प्रसंग- प्रस्तुत श्लोक हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी’ (प्रथमो भागः) के जटायोः शौर्यम् नामक पाठ से उद्धृत है। इस श्लोक में जटायु द्वारा रावण की शक्तिसम्पन्नता को दर्शाते हुए तथा अपने शौर्य को प्रकट करते हुए चेतावनी दिये जाने का वर्णन हुआ है कि रावण जटायु के रहते सीता का अपहरण करके नहीं ले जा सकता है। जटायु रावण से कहता है कि-

हिन्दी अनुवाद- (हे रावण) मैं वृद्ध हूँ और तुम युवा, धनुर्धर, रथसहित, कवच धारण किये हुए तथा बाणों से युक्त हो। तो भी मेरे रहते हुए तुम सकुशल सीताजी को लेकर नहीं जा सकते हो।

(7) Class 9 Sanskrit Chapter 10 Hindi translation

तस्य तीक्ष्णनखाभ्यां तु चरणाभ्यां महाबलः।

चकार बहुधा गात्रे व्रणान्पतगसत्तमः॥

अन्वय- महाबलः पतगसत्तमः तु तीक्ष्णनखाभ्यां चरणाभ्यां तस्य गात्रे बहुधा व्रणान् चकार।

कठिन शब्दार्थ- महाबलः = महान् बलशाली। पतगसत्तमः = पक्षिराज जटायु । गात्रे = शरीर पर। व्रणान् = प्रहार से होने वाले घावों को। चकार = किया।

प्रसंग- प्रस्तुत श्लोक हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी’ (प्रथमो भागः) के जटायोः शौर्यम् नामक पाठ से उद्धृत है। इस श्लोक में जटायु के शौर्य को दर्शाते हुए उसके द्वारा रावण को घायल किये जाने का वर्णन हुआ है।

हिन्दी अनुवाद- महान् बलशाली पक्षिराज जटायु ने अपने तीक्ष्ण नाखूनों वाले पंजों से उस रावण के शरीर पर अनेक प्रकार से प्रहारजनित घाव कर दिए।

(8) Class 9 Sanskrit Chapter 10 Hindi translation

ततोऽस्य सशरं चापं मुक्तामणिविभूषितम् ।

चरणाभ्यां महातेजा बभजास्य महद्धनुः॥

अन्वय- ततः महातेजा चरणाभ्यां अस्य मुक्तामणिविभूषितं  सशरं चापं (च) अस्य महद् धनुः बभञ्ज।

कठिन शब्दार्थ- महातेजा = महान् तेजस्वी। मुक्तामणिविभूषितं = हीरे-मोतियों से सुसज्जित। सशरम् = बाण सहित। चापम् = धनुष को। बभञ्ज = तोड़ दिया।

प्रसंग- प्रस्तुत श्लोक हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी’ (प्रथमो भागः) के जटायोः शौर्यम् नामक पाठ से उद्धृत किया गया है। मूलतः यह पाठ आदिकवि वाल्मीकि विरचित ‘रामायण’ के अरण्य काण्ड से संकलित है। इस श्लोक में पक्षिराज जटायु के पराक्रम का तथा उसके द्वारा रावण के धनुष को तोड़ दिये जाने का वर्णन किया गया है।

हिन्दी अनुवाद- उसके बाद उस महान् तेजस्वी जटायु ने अपने पंजों से उस रावण के मुक्तामणियों से सुसज्जित बाणों से युक्त धनुष को तथा अन्य बड़े धनुष को भी तोड़ दिया।

(9) Class 9 Sanskrit Chapter 10 Hindi translation

स भग्नधन्वा विरथो हताश्वो हतसारथिः।

अङ्केनादाय वैदेहीं पपात भुवि रावणः॥

अन्वय- स भग्नधन्वा, विरथः हताश्वः हतसारथिः रावणः वैदेहीं अङ्केन आदाय भुवि पपात।

कठिन शब्दार्थ- भग्नधन्वा = टूटे हुए धनुष वाला। विरथः = रथहीन। हताश्वः = मारे गए घोड़ों वाला। हतसारथिः = मारे गए सारथि वाला। वैदेहीं = सीता को । अङ्केन = गोद में। आदाय = लेकर। भुवि = पृथ्वी पर। पपात = गिर पड़ा।

प्रसंग- प्रस्तुत श्लोक हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी’ (प्रथमो भागः) के जटायोः शौर्यम् नामक पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ आदिकवि वाल्मीकि विरचित ‘रामायण’ के अरण्य काण्ड से संकलित है। इस श्लोक में जटायु के प्रहार से घायल हुए रावण को सीता के साथ पृथ्वी पर गिरने का वर्णन किया गया है।

हिन्दी अनुवाद- (जटायु के प्रहारों से) वह टूटे हुए धनुष वाला, टूटे हुए रथ वाला, मारे गए घोड़ों तथा मारे गए सारथि वाला रावण सीता को गोद में लेकर पृथ्वी पर गिर पड़ा।

(10) Class 9 Sanskrit Chapter 10 Hindi translation

संपरिष्वज्य वैदेहीं वामेनाङ्केन रावणः।

तलेनाभिजघानाशु जटायु क्रोधमूर्च्छितः॥

अन्वय- क्रोध मूर्च्छितः रावणः वैदेहीं वामेन अङ्केन संपरिष्वज्य आशु जटायुं तलेन अभिजघान।

कठिन शब्दार्थ- वैदेहीम् = सीता को । वामेनाङ्केन = बाई भुजा से। संपरिष्वज्य = पकड़कर। आशु = शीघ्र ही। तलेन = थप्पड़ से। अभिजघान = मार डाला।

प्रसंग- प्रस्तुत श्लोक हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी’ (प्रथमो भागः) के जटायोः शौर्यम् नामक पाठ से उद्धृत है। इस श्लोक में जटायु के प्रहारों से घायल होकर पृथ्वी पर गिर पड़े रावण द्वारा क्रोध में आकर जटायु को थप्पड़ से मार दिये जाने का वर्णन किया गया है।

हिन्दी अनुवाद- (जटायु के प्रहारों से घायल होने के कारण) क्रोध से मूर्च्छित हुए रावण ने सीता को बाईं भुजा से पकड़कर शीघ्र ही जटायु को थप्पड़ से (प्राणघातक प्रहार करके) मार डाला।

(11) Class 9 Sanskrit Chapter 10 Hindi translation

जटायुस्तमतिक्रम्य तुण्डेनास्य खगाधिपः।

वामबाहून्दश तदा व्यपाहरदरिन्दमः॥

अन्वय- अरिन्दमः खगाधिप: जटायु तदा तुण्डेन तं अतिक्रम्य अस्य दश वाम बाहून् व्यपाहरत्।

कठिन शब्दार्थ- अरिन्दमः = शत्रुओं को नष्ट करने वाला। खगाधिपः = पक्षिराज। तुण्डेन = चोंच से। अतिक्रम्य = आक्रमण करके । वाम बाहून् = बाईं भुजाओं को। व्यपाहरत् = उखाड़ दिया।

प्रसंग- प्रस्तुत श्लोक हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी’ (प्रथमो भागः) के जटायोः शौर्यम्’ नामक पाठ से उद्धृत किया गया है। मूलतः यह पाठ महर्षि वाल्मीकि विरचित ‘रामायण’ के ‘अरण्यकाण्ड’ से संकलित है। इस श्लोक में पक्षिराज जटायु की स्वामिभक्ति एवं शौर्य को दर्शाया गया है। वह सीताजी को रावण के चंगुल से मुक्त कराने के लिए मृत्युपर्यन्त उससे संघर्ष करता है तथा रावण को क्षत-विक्षत कर देता है किन्तु उस राक्षसराज रावण के हाथों उसकी मृत्यु हो जाती है।

हिन्दी अनुवाद- शत्रुओं का विनाश करने वाले, पक्षिराज जटायु ने तब (रावण द्वारा प्राणघातक आक्रमण करने पर) अपनी चोंच से उस रावण पर आक्रमण करके उसकी बाईं ओर की दसों भुजाओं को उखाड़ दिया। अर्थात् मरने से पूर्व जटायु ने अन्तिम साँस तक स्वामिभक्ति प्रदर्शित करते हुए रावण को भारी क्षति पहुँचाई।

पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. एकपदेन उत्तरं लिखत

(क) आयतलोचना का अस्ति?

(ख) सा कं ददर्श?

(ग) खगोत्तमः कीदृशीं गिरं व्याजहार?

(घ) जटायुः काभ्यां रावणस्य गात्रे व्रणं चकार?

(ङ) अरिन्दमः खगाधिपः कति बाहून् व्यपाहरत्?

उत्तराणि- Class 9 Sanskrit Chapter 10

(क) सीता।

(ख) गृध्रम् (जटायुम्) ।

(ग) शुभाम्।

(घ) तीक्ष्णनखाभ्यां चरणाभ्याम् ।

(ङ) दश।

प्रश्न 2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत

(क) “जटायो! पश्य” इति का वदति?

(“जटायु ! देखो”- ऐसा कौन कहती है?)

उत्तर- “जटायो! पश्य” इति वैदेही वदति।

(“जटायु ! देखो”- ऐसा सीता कहती है।)

(ख) जटायुः रावणं किं कथयति?

(जटायु रावण से क्या कहता है?)

उत्तर- “रावण ! परदाराभिमर्शनात् नीचां मति निवर्तय” इति।

(“रावण ! पराई स्त्री के स्पर्श से दुष्ट बनी हुई दुर्बुद्धि को छोड़ो।”)

(ग) क्रोधवशात् रावणः किं कर्तुम् उद्यतः अभवत्?

(क्रोध के कारण रावण क्या करने को तत्पर हो गया?)

उत्तर- क्रोधोन्मत्त रावण: जटायुं तलेन अभिजघान।

(क्रोध से पागल हुए रावण ने जटायु को जमीन से ही मार डाला।)

(घ) पतगेश्वरः रावणस्य कीदृशं चापं सशरं बभञ्ज?

(पक्षिराज ने रावण के किस प्रकार के धनुष को बाण सहित तोड़ डाला?)

उत्तर- पतगेश्वरः रावणस्य मुक्तामणि विभूषितं सशरं चापं बभञ्ज।

(पक्षिराज ने रावण के मुक्ता मणियों से सुसज्जित बाण सहित धनुष को तोड़ डाला।)

(ङ) जटायुः केन वामबाहुं दंशति?

(जटायु किससे बायीं भुजा को काटता है?)

उत्तरम्- जटायुः तुण्डेन वामबाहुं दंशति।

(जटायु चोंच से बायीं भुजा को काटता है।)

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प्रश्न 3. उदाहरणमनुसृत्य णिनि-प्रत्ययप्रयोगं कृत्वा पदानि रचयत

यथा- 

  • गुण + णिनि – गुणिन् (गुणी)
  • दान +  णिनि – दानिन् (दानी)

उत्तर- Class 9 Sanskrit Chapter 10 Question Answer

  • कवच + णिनि – कवचिन् (कवची)
  • शर + णिनि – शरिन् (शरी)
  • कुशल + णिनि – कुशलिन् (कुशली)
  • धन + णिनि – धनिन् (धनी)
  • दण्ड + णिनि – दण्डिन (दण्डी)

(अ) रावणस्य जटायोश्च विशेषणानि सम्मिलितरूपेण लिखितानि तानि पृथक्-पृथक् कृत्वा लिखत

युवा, सशरः, वृद्धः, हताश्वः, महाबलः, पतगसत्तमः, भग्नधन्वा, महागृधः, खगाधिपः, क्रोधमूर्च्छि तः, पतगेश्वरः, सरथः, कवची, शरी।

यथा-

  • रावणः जटायुः
  • युवा वृद्धः

उत्तर- Class 9 Sanskrit Chapter 10 Question Answer

  • रावणः जटायुः
  • सशराः महाबलः
  • हताश्वः पतगसत्तमः
  • भग्नधन्वा महागृध्रः
  • क्रोधमूर्च्छितः खगाधिपः
  • सरथः पतगेश्वरः
  • कवची शरी

प्रश्न 4. ‘क’ स्तम्भे लिखितानां पदानां पर्यायाः ‘ख’ स्तम्भे लिखिताः। तान् यथासमक्षं योजयत

उत्तर-             

  • कवची         कवचधारी
  • आशु           शीघ्रम्
  • विरथः         रथविहीनः
  • पपात          अपतत्
  • भुवि           पृथव्याम्
  • पतगसत्तमः पक्षिश्रेष्ठः

प्रश्न 5. अधोलिखितानां पदानां/विलोमपदानि मञ्जूषायां दत्तेषु पदेषु चित्वा यथासमक्षं लिखत

मन्दम् पुण्यकर्मणा हसन्ती अनार्य अनतिक्रम्य  देवेन्द्रेण प्रशंसेत् दक्षिणेन युवा

उत्तर- पदानि       विलोमशब्दाः

(क) विलपन्ती      हसन्ती

(ख) आर्य             अनार्य

(ग) राक्षसेन्द्रेण   देवेन्द्रेण

(घ) पापकर्मणा   पुण्यकर्मणा

(ङ) क्षिप्रम्          मन्दम्

(च) विगर्हयेत्     प्रशंसेत्

(छ ) वृद्धः           युवा

(ज) वामेन         दक्षिणेन

(झ) अतिक्रम्य  अनतिक्रम्य

प्रश्न 6. Class 9 Sanskrit Chapter 10 Question Answer

(अ) अधोलिखितानि विशेषणपदानि प्रयुज्य संस्कृतवाक्यानि रचयत

उत्तर- विशेषणम्    वाक्यम्

  • शुभाम्- सः शुभां कन्याम् अपश्यत्।
  • खगाधिपः- खगाधिपः जटायुः शौर्यं प्रकटितवान्।
  • हतसारथिः- हतसारथिः सेनापतिः भुवि अपतत् ।
  • वामेन- सः वामेन हस्तेन कार्यं करोति।
  • कवची- संग्रामे कवची सैनिक: युद्धं करोति।

(आ) उदाहरणमनुसृत्य समस्तं पदं रचयत

यथा- त्रयाणां लोकानां समाहारः – त्रिलोकी

उत्तर- 

  • पञ्चानां वटानां समाहारः – पञ्चवटी।
  • सप्तानां पदानां समाहारः – सप्तपदी।
  • अष्टानां भुजानां समाहारः – अष्टभुजी।
  • चतुर्णा मुखानां समाहारः – चर्तुर्मुखी।

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर 

प्रश्न 1. ‘जटायोः शौर्यम्’ पाठः मूलतः कुतः संकलितः?

उत्तर-जटायोः शौर्यम्’ पाठः मूलत: वाल्मीकिविरचितात् ‘रामायणात्’ संकलितः।

प्रश्न 2. विलपन्ती सीता वनस्पतिगतं कं ददर्श?

उत्तर- विलपन्ती सीता वनस्पतिगतं गृधं (जटायु) ददर्श ।

प्रश्न 3. सीतायाः हरणं केन कृतम्?

उत्तर- सीतायाः हरणं राक्षसेन्द्रेण रावणेन कृतम्।

प्रश्न 4. अवसुप्तः जटायुः किम् शुश्रुवे?

उत्तर- अवसुप्तः जटायुः सीतायाः करुणं शब्दं शुश्रुवे।

प्रश्न 5. जटायुः कं निरीक्ष्य क्षिप्रं कम् ददर्श?

उत्तर- जटायुः रावणं निरीक्ष्य क्षिप्रं वैदेहीं ददर्श ।

प्रश्न 6. वनस्पतिगतः कः शुभां गिरं व्याजहार?

उत्तर- वनस्पतिगतः जटायुः शुभां गिरं व्याजहार।

प्रश्न 7. धीरः किम् न समाचरेत्?

उत्तर- धीरः तत् न समाचरेत् यत् परः अस्य विगर्हयेत् ।

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